Friday 6 November 2015

कविता ३००. रोशनी और अँधेरा

                                                              रोशनी और अँधेरा
हर सोच के अंदर अलग एहसास छुपा होता है जिसे परखे तो जीवन का राग जुदा होता है जीवन में हर पल जब हम कुछ समज लेते है तो जीवन का एहसास अलग होता है
हर पल जीवन के अंदर सोच हर बार रोशनी देती है वह रोशनी जो जीवन को नया उजाला देती है जीवन में हर बार रोशनी तो असर कर जाती है
धीमे धीमे रोशनी से जीवन मे शुरुआत अलगसी होती है रोशनी जो जीवन को सोच नई देती है उसे समज लेने का एहसास नया होता है
रोशनी जो हमें आगे ले जाती है जिसे समज लेने से रोशनी की कहानी नया एहसास लाती है पर कभी कभी रोशनी तो जीवन को मतलब देती है
रोशनी के अंदर का एहसास जो सोच लाता है वही एहसास कभी कभी जीवन में अलग कहानी देता है क्योंकि जीवन पर अलग सोच एहसास देती है
कभी कभी अँधेरे में भी अलग कहानी जिन्दा होती है अँधेरे के साथ जीवन में खुशियाँ आती है जीवन के अंदर अलग सोच आती है
अँधेरे के साथ रोशनी भी जीवन का हिस्सा हर बार होता है अँधेरा जीवन के अंदर अलग एहसास कर जाता है हर बार रोशनी ही नहीं पर अँधेरा भी सही होता है
बस उसे समज लेना जरुरी होता है अगर अँधेरे को समजे तो जीवन के अंदर अलग एहसास होता है जो मन को और जीवन को छूता है
रोशनी और अँधेरे दोनों के अंदर अलग एहसास होता है दोनों चीजों के बीच में अलग एहसास होता है अलग सोच जीवन को नया असर होता है
अँधेरे के अंदर अलग अलग ख़याल जीवन को कभी कभी उम्मीदे दे जाते है क्योंकि शायद अँधेरे में ही रोशनी जिन्दा होती है

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