Sunday 22 November 2015

कविता ३३३. जमीन की जरूरत

                                                                   जमीन की जरूरत
जब ज़मीन पर हम चलते है सोच नईसी आती है जो उस सोच को समज ले दुनिया उनकी हो जाती है ज़मीन को समजे तो एक बात समज मे आती है
ज़मीन तो बस वही रहती है हर बार दुनिया ही बदल जाती है जब हम समज ले ज़मीन  को तो बस वही जिन्दगी आसन नज़र आती है क्योंकि चलने के लिए ज़मीन है तो जिन्दगी भी संभल जाती है
ज़मीन पर हर कदम साँसें ख़ास नज़र आती है क्योंकि कभी हम जीते और कभी हम हारे पर ज़मीन साथ हमेशा रहती है ज़मीन पर ही तो जीवन कि हर कहानी बनती और बिगड़ती है
पर ज़मीन पर मरते दम तक हम रह पाते है हमारी हार पर हमे न ठुकराये यह बात ज़मीन ही करती है गिरने पर सारी दुनिया जब हँसती है ज़मीन ही मज़बूत कदम से खड़ी रहती है
जमीन ही तो हमारी उम्मीद होती है जो हमें जीवन देती है हमें उम्मीद देती है क्योंकि जमीन ही तो हमें मजबूती देती है जमीन पर चलना ही जीवन की जरूरत होती है बाकी चीजे तो आती जाती है
जमीन ही तो सुख और दुःख दोनों में हमारा साथ देती है जमीन ही तो जीवन में रोते हुए इन्सान को मौका देती है जमीन ही जीवन की सबसे बड़ी उम्मीद बनती है
जमीन ही जीवन को सही दिशा देती है जमीन ही जीवन की उम्मीद होती है जो रोने पर हमे सहारा दे वह सोच होती है जमीन में ही तो जरूरत होती है
तो फिर क्यूँ डरे किसी चीज से जब जमीन हमारे पैरो के नीचे होती है जमीन को समज लेना ही जीवन की सही जरूरत होती है वही जीवन को आगे ले जाती है
जमीन अगर हमारे पास हो तो जीवन को उम्मीद होती है जो जीवन के अंदर नई सोच दे जाती है जो जीवन की अहमियत होती है
तो जब जीवन में उम्मीद होती है वह सिर्फ जमीन की बजह से होती है जीवन में उम्मीदे जो रोशनी देती है वह उस जमीन से जिन्दा होती है
तो किसी और चीज के बारे में हम क्यूँ सोचे जब तक हमारे पैरो तले जमीन होती है जो जीवन को हर बार अलग उम्मीद देती है 

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