Friday 6 November 2015

कविता ३०१. पानी कि एक बूँद

                                                       पानी कि एक बूँद
बारीश कि हर बूँद के संग जीवन का एहसास समज जाता है पर कभी कभी बिन पानी के ही जीवन अपनी प्यास समजा लेता है जिसे मन से समजे उस सोच को मन धीमे से समज पाता है
उस सोच के अंदर ही जीवन का एहसास अलग आ जाता है पानी बरसे या ना बरसे हमे राह तो ढूँढनी होती है जो हर पल जीवन कि प्यास बुझाती रहती है
पानी आसमान से मिले ना मिले प्यास तो मिटानी होती है क्योंकी हर जीवन मे प्यास निराली होती है एक बार बरसने से वह प्यास जीवन मे नही बुझती है
पानी के अंदर जीवन कि कोई कहानी बनती है प्यास के अंदर ही जीवन कि निशानी दिखती है कैसे समजे उस पानी को समजे हम जिसमे जीवन कि कहानी रहती है
पानी के अंदर जीवन कि प्यास हर बार मायने रखती है पर पर कभी कभी बिन पानी कि भी प्यास बुझानी पडती है पानी के हर बूँद मे जीवन कि कहानी होती है
हर बार पानी कि बूँद मे एहसास तो प्यारा होता है जो जीवन को अलग सोच हमेशा देता है शीतल  एहसास से जीवन को खुशियाँ देता है पानी कभी कभी नही बरसता है
पर जो है उसमे ही जीना पडता है कभी पानी के बिना भी हर मुश्कील शायद खुदा चाहते है हम जीना सीखे पर बारीश तो नही है पर कम से कम इन्सान अच्छाई कि बारीश कर ले ऐसा एहसान कर दे जब हम यह कहते है
हँस के वह कहता है हम से बिन कहे कि अलग इन्सान अच्छाई कि बारीश करता तो हम बारीश उन्हे तोहफे मे दे जाते इन्सानियत से दूर रहनेवाले बारीश कि कदर कहा जान पाते है
जो भगवान बने बैठे है उनकी ताकद को वह आजमाना चाहते है माना के आज आँखों मे आँसू भरे होगे पर एक बार इन्सान समज जाये तो वह रंग और अच्छे गेहरे होते है
चुपचाप उसकी इस बात पर हम गर्दन हिलाते है क्या कहे हम उस उप्परवाले से इन्सान भी कितनी गलतीयाँ हर बार करते है इसीलिए हम चुपके से हामी भरते रहते है

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