Sunday 1 November 2015

कविता २९०. आँसू का तोहफ़ा हमारी हँसी

                                   आँसू का तोहफ़ा हमारी हँसी
चलते चलते हँसना सीखा उस पल ही रोना भूल जाना अच्छा लगता है जब हँसना चाहे तब जाने क्यूँ आँसू दुश्मन सा दिखता है हँसी को अपनी पूँजी समज कर जीना चाहा हमने
शायद इसलिए ठीक से हँसना कहा सीखा है हमने जो बात हम दिल के अंदर कई बार समज लेते है उस बात का मतलब अलग तरीक़े से अपना लिया है हमने
हँसना तो हर बार ज़रूरी होता है जीवन मे उस सोच को क्या परखे जीवन ढूँढ़ लिया जिसमें अगर हर बार उम्मीदें रोशनी दे जाती हर पल उजाला ढूँढ़ लिया होता हमने
पर  कभी आँसू भी जीवन कि शुरुआत बन जाते है आँसू से इतना डरते है हम कि ख़ुशियों से कतराने लगते है हँसना हम हर बार समज लेने कि चाहत रखी है हमने
आँसू और हँसी दोनों को जब समज जाये हम तभी दुनिया को समज पाते है ख़ुशियाँ जीवन मे हर बार ले आते है कभी हँसी कि उम्मीदें रखकर ही ग़म को सहा है हमने
तब तो हम दुनिया कि ख़ुशियाँ परख लेते है जब जब हँसी जीवन को नई साँसें दे जाती है उसकी शुरुआत अक्सर गमों से ही नज़र आती है इसलिए तो आँसू भी अपना लिए है हमने
आँसू और हँसी एक सिक्के के दो पेहलू है चाहे कितना भी नाकारे वह आते रहते है जीवन मे उन सिक्कों को समज लेने के लिए जीवन की हर बार एक ज़रूरत होती है यह देखा है हमने
आँसू ही तो हँसी कि शुरुआत कभी कभी होती है आँसू के साथ जब दोस्ती जीवन को आगे ले जाती है क्योंकि आँसू जीवन को नई राह दिखाते रहते है इसलिए उन्हे अपना लिया है हमने
जाने क्यूँ तब से हर कदम हँसी ही मिलती रहती है जीवन मे आँसू से नई शुरुआत होती है हँसी जो जीवन के अंदर नया असर करती है जब वह हँसी आयी वही सच्ची ख़ुशियाँ हासिल कि है हमने
आँसू और हँसी जो जीवन को अलग मतलब देती है जीवन मे क्योंकि असली हँसी तो आँसू ही लाते है जीवन मे क्योंकि बिन मेहनत का कुछ नहीं हासिल किया है हमने

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