Sunday 11 October 2015

कविता २४८. जीवन का बढ़ना

                                                              जीवन का बढ़ना
कोई आगे जाये या ना जाये जीवन कि हर सुबह तो अलग नज़र आती है क्योंकि जीवन तो आगे बढ़ता है रुकना उसकी फिदरत नहीं होती है तो हम चाहे या ना चाहे जीवन कि अगली सुबह तो होती ही है
जिसे परख लेते है तो दुनिया नये नये रंग दिखाती है हम चाहे या ना चाहे दुनिया तो आगे जाती है दुनिया कि कहानी हर सुबह श्याम बदल जाती है
अगर हम रुक जाये तो जीवन मे अलग बढ़ने कि कहानी होती है जीवन के अंदर आगे बढ़ने कि शुरुआत हमेशा होती है आगे हम बढ़ते जाये तो नई कोशिश होती है
हर बार हम जीवन पर कुछ तो असर होता है जीवन के अंदर आगे बढ़ना होता ही है उसे चाहे या ना चाहे यह अपनी सोच होती है
पर जीवन पर हमारी सोच का असर नहीं होता है हम अगर जीवन को समजे तो उस पर अलग तरीके का असर होता है
जीवन आगे तो बढ़ता है और उसके साथ असर जरूर होता है जीवन अपने हिसाब से आगे बढ़ जाता है उसे समज लेना जरुरी होता है
अगर हम रुके और वह आगे बढ़ जाये तो वह अलग एहसास दे जाता है जीवन के अंदर कुछ तो अलग होता है हम नहीं रुके तो ही हमारे जीवन का मतलब बनता है
तो जीवन में अलग तरह का एहसास तो हमें आगे ले जाता है जीवन में नई शुरुआत होती है तो हमें भी आगे जाना जरुरी होता है
जीवन के अंदर नई शुरुआत हमें जीवन को नया असर हमेशा देती है जीवन जो बढ़ जाता है वह रोशनी देता है जीवन आगे बढ़ जाता है
हमें भी आगे जाना होता है जीवन को सही तरीके से हम समजे तो उसका गलत असर हर बार हमें अलग सोच देता जाते है 

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