Friday 23 October 2015

कविता २७२. कुछ पल

                                                                   कुछ पल
कुछ पलों को हमने परख लिया कुछ पलों को हमने भुला दिया जीवन के इस खेल में कभी हम जिए और कभी हमने जीना भुला दिया
हर एक पल को समजे हम पर फिर भी कुछ पलों को हमने भुला दिया जिन्हें हर बारी जीना चाहते थे हम उन पलों से किनारा कर लिया
जीवन तो हर बारी हर पल से आगे बढ़ता गया हर पल के अंदर जीवन का एक किस्सा जीना हमने सीख लिया जिन्हें समज लेना चाहते थे उन ख्वाबों को भुला दिया
हर पल संग आगे बढ़ने लगे पर कुछ पलों को भुला दिया जीवन की उस सोच में जिसमे जीना चाहते थे हमने उस हम को रुला दिया
जीवन तो उन पलों का किस्सा है जिसे जीवन का हिस्सा हमने बना लिया जिन्हे परख लेते है हम उन ख्वाबों को ही भुलाना सीखा दिया
पर फिर और एक बात समजे हम जीवन से एक पल में वह रुकता नहीं और अगर हम नहीं चाहे तो वह झुकता नहीं उस जीवन ने हमे आगे बढ़ना सीखा दिया
हर बारी जब हम आगे जाते है उस पल में जीवन का नया एहसास समज लेना जरुरी होता है पल के अंदर जीवन का अलग एहसास होता है
कुछ पल जिन्हे हम समज लेते है उनके अंदर नई शुरुआत जीवन को आगे ले जाती है हर पल के अंदर नई सोच जीवन में आता है
पलों के भीतर नया एहसास आता है जिसे समज लेना जीवन को नई शुरुआत हर बार दे जाता है जिसे परख लेना जीवन में खुशियाँ लाता है
जीवन के अंदर हर पल जीवन को अलग एहसास होता है हर पल को समज लेना जीवन पर कुछ ना कुछ असर तो जरूर होता है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१६५. उम्मीदों को किनारों की।

                               उम्मीदों को किनारों की। उम्मीदों को किनारों की सौगात इरादा देती है आवाजों को अदाओं की पुकार पहचान दिलाती है द...