Tuesday 6 October 2015

कविता २३९. किनारों को समजना

                                                              किनारों को समजना
किनारा जो जीवन मे रोशनी दे जाये उसे परखे जिसके अंदर नई शुरुआत हम पाये पर हर बार ज़रूरी नहीं है कि वह किनारा आसानी से मिल जाये ढूँढ़ने पर ही तो मिलते है किनारे जो हमने चाहे
जीवन मे हर बार यह आसान नहीं होता कि हम किनारा ढूँढ़ पाये क्योंकि उन्हीं किनारों से मिलते है हमे कई साये जब जब हम जीवन मे आगे बढ़ते जाये बड़े मुश्किल लगते है सारे साये
जीवन कि कश्ती मे जाने कितने रंग हमने है पाये पर फिर जब किनारों पे मुश्किल दिखती है तब उम्मीद डूबती हुई नज़र आये जीवन के अंदर हर बार मिलते है अलग साये उन्हें समज के हम किनारा समज पाये
किनारा जब जब हमे आगे ले जाये हम किनारों को सही और प्यारा पाये पर जब उन्हीं किनारों मे दिखाते है साये जाने क्यूँ जीवन उन्हें कभी भी परख न पाये
जीवन के हर मोड़ पर हमे दिखते है साये जिन्हें किनारों पर भी हम देखते जाए हमे उम्मीद होती है किनारों से शांति कि पर किनारा ही तो नई कसोटी जीवन मे लाये
किनारा जो जीवन मे अलग अलग सोच लाता है वह किनारा आसान नहीं वह नई शुरुआत लाता है साथ मे जीवन के अंदर नई मुश्किल भी लाता है किनारे पे हम रुकना चाहे
पर किनारा कभी कभी रुकावट हमें दे जाता है क्योंकि किनारे का मतलब सिर्फ शांति नहीं कभी कभी मुसीबत भी बन जाती है पर हमारा दिल यह ना चाहे
वह हर बार सिर्फ खुशियाँ चाहे किनारों पर सिर्फ इस बात का अफ़सोस है हर पल यह होता नहीं है जीवन में किसी भी मोड़ में और हर पल हम यही चाहे
की आसानी से सुलज जाये हमारे जीवन के सारे साये आगे बढ़ने की कोशिश में हर पल हम बस यही पाये हम जीवन में उम्मीदें सीख जाये
किनारा नहीं हम रोशनी को हर मोड़ पर समज लेना चाहे किनारों में हर बार मुसीबत भी आये कितना भी हम चाहे पर किनारा अंत नहीं किनारे में हम शुरुआत पाये 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१५३. इशारों को अफसानों संग।

                             इशारों को अफसानों संग। इशारों को अफसानों संग आस तलाश दिलाती है लहरों की आवाज पुकार सुनाती है तरानों को उम्मीदों...