Saturday 31 October 2015

कविता २८९. मासूमसी चाहत

                                    मासूमसी चाहत
कुछ बात तो मासूमसी कभी हम कह जाते पर हमने देखा है अक्सर खुदा उसे ही सच बनाते है एक बात जो मासूमसी सच होगी जो हम सोच भी न पाते है
दिल से माँगो उसको तो खुदा उसे हमे दे जाते है जीवन के हर एक मोड़ पर हम नये ख्वाब देखते है उन्हें खुदा ही तो हमारे लिए हर बार सच बनाते है
मासूम बातों मे ही हम दुनिया को पाते है हर चीज़ को समज लेने कि सोच हम मन मे रख लेते है जिसे परख लेना हम ज़रूरी पाते है उस मासूम सोच मे दुनिया को समज जाते है
मासुमियत का अलग एहसास होता है जो मन को छू जाता है मासूम दिल ही तो मिले या ना मिले चीज़ को माँगते रहता है मासूम सोच के अंदर ख़ुशियाँ होती है
मासूम सोच के अंदर हमारी दुनिया होती है जो जीवन के हर मोड़ को समज लेता है उस मासूम ख़याल से ही दुनिया का रंग बदल जाता है मासूम सोच के अंदर एहसास नया होता है
जिसे पाना भले मुश्किल लगता हो पर उसमें एक आस होती है जो जीवन के अंदर एक प्यास देती है मासूमसी सोच का एहसास दिलाती जो जीवन मे एक नई शुरुआत देती है
जीवन को वह जो आस देती है जिसे दुनिया हर बार परख लेती है कभी मासूम सी सोच जीवन के अंदर अलग एहसास देती है वह हर बार जीवन को कुछ ना कुछ तो कहती रहती है
मासूम सोच भी कभी कभी एहसास देती है जो जीवन को नया साज़ देती है वह सोच तो बार बार आगे आना बढ़ना चाहती है मासूम तरह कि सोच रुकना नहीं चाहती है
वह उम्मीदों के सहारे आगे हर बार बढ़ती है जीवन के अंदर हर बार चाहत को वह जारी रखती है मासूम सोच कभी कभी हार नहीं मानती इसीलिए तो जीत मासूम सोच कि हर बार होती है
मासूम तरीक़े से ही दुनिया आगे बढ़ती है उस मासूम चाहत को ही आगे जाने कि उम्मीद होती है इसीलिए शायद भूली बिसरी प्यारी सी मासूम बचपन कि चाहत पूरी होती है

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