Sunday 4 October 2015

कविता २३४. बातों को याद करना

                                                               बातों को याद करना
बातों के बिघड जाने से दुनिया नहीं रुकती पिछले सूरज के डूबने से अगले सूरज का उगना नहीं रुकता बातें तो बदल जाती है दुनिया मे पुरानी बातों के खो जाने से दुनिया संभलना नहीं भुलती
बातों के अंदर कि कहानी दुनिया आसानी से नहीं समजती पर जब जब आगे बढ़ने का मौका आये दुनिया आगे बढ़ना नहीं भुलाती है जीवन को समज लेना नहीं भूल पाती
हालाँकि कभी कभी बड़ा ग़लत लगता है पर दुनिया आगे जाना रोक नहीं सकती जीवन को समजे तो वह भी गलत नहीं लगता पर दिल किसी बात को समजता ही नहीं
बातों के अंदर नई दुनिया होती है जो जीवन को हर बार जीना सिखाती है जीवन में जब आगे जाये दुनिया रंग अलग देती है हम चाहे या ना चाहे पर दुनिया तो आगे ही है बढ़ जाती
तो क्यों रोए उस बात पर जो असर कर जाती है हर बार जीवन को नये रंग तो जीवन को मिलते रहते है जिसे समज लेनेसे मनको खुशियाँ है मिलती
बातों के अंदर नई शुरुआत है होती पर बातों के भीतर अलग दुनिया है दिखती जिसे समजे तो नयी सुबह गलत नहीं जीवन की अकलमंदी है लगती
पर फिर धड़कन कभी कभी उसे गलत कहती है तो उसे समजाओ के गुजरी बात लौट कर नही आती हम उस मन को समजे जिसमे दुनिया है बसती
माना हमें पुरानी बातें प्यारी है लगती पर उनकी सौगाद जीवन पर कुछ अलग असर हर बार है करती जिसे परखे तो जीवन की अलग बात है दिखती
हर रंग में नई शुरुआत है दिखती और पुरानी बातों में बस प्यास है दिखती फिर भी कभी कभी वह प्यास जरुरी है लगती
जीवन की कहानी उस प्यास से ही मन को है छूती इसलिए ही तो कभी कभी हम पुरानी बचपनकी कहानी दोहराते है जब जब उसे सुनकर हमारे होंठ है हसते कहानी है अच्छी
पर अगर उस कहानी से उसे खोने के गम में हमारी आँख रो दे तो जीवन की नयी सोच अक्सर मन को हमेशा है छूती 

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