Saturday 31 October 2015

कविता २८८. चोट

                                              चोट
हर बार जब जीवन के अंदर अलग सोच बनती है जिसे जीवन अपना ले या ना अपना ले पर जीवन का अलग एहसास नई सोच तो ले ही आता है क्योंकि वह ज़रूरी होता है
हर सोच के अंदर अलग एहसास हर बार जिन्दा होता है जिसे समज लेना हर बार दिशा है जीवन कि एक ताकद होती है जो हमे आगे ले जाती है
जीवन के बीच मे अलग सोच का एहसास जो उम्मीदें देता है उसे समज लेना सबसे ज़रूरी होता है जिसे परखे तो जीवन का मतलब होता है जो जीवन मे साँसें देता है
हर कदम जीवन कि सोच अलग होती है जो जीवन के अंदर कोई तो सोच हमेशा नई शुरुआत होती है पर हर बार शुरुआत सही नहीं होती है कभी कभी मन को चोट है
हर चोट को समज लेना जीवन कि सच्ची कहानी होती है हर चोट जो तो जीवन को अलग एहसास देतीं है वह दर्द जो जीवन को आगे ले जाता है वही हमे आगे ले जाता है
चोट से जीवन को आगे ले जाना सही नहीं होता है पर अगर वह जीवन मे रखनी है तो मलहम भी हर बार हर कदम पर ज़रूरी लगता है जो जीवन को उम्मीदें दे जाता है
उसी सोच के अंदर चोट का असर हर बार होता है जिसे समज लेना जीवन को आगे ले जाता है चोट से ही तो कभी कभी जीवन का अलग तरह का असर हर बार होता है
जीवन तो चोट का मतलब कुछ अलग लगता है चोट से ही तो जीवन नया बनता है उसे समज लेना जीवन मे ज़रूरी होता है चोट जो जीवन को जिन्दा रखती है वह जीवन को आगे ले जाती है
चोट मे ही कई मतलब छुपे होते है जीवन का चोट से उभर जाना हमेशा ज़रूरी होता है चोट का हमेशा जीवन पर कुछ तो असर होता है चोट को समज कर तो नई शुरुआत होती है
बिन चोट को समजे जीवन नहीं चलता है चोट के अंदर ही दुनिया कि नई शुरुआत हर बार है दिखती चोट को अनदेखा समज लेना जीवन मे हर बार ज़रूरी होता है

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