Sunday 18 October 2015

कविता २६२ नदियाँ का बांध

                                             नदियाँ का बांध
नदियाँ तो जीवन कि एक धारा बन जाती है जो हर मोड़ और हर राह पर आगें बढ़ जाती है जीवन को रोक कोई लगा कर वह आगे चली जाती है
नदियाँ तो अलग तरह कि सोच जो जीवन को आगे ले जाती है वह हर बारी जीवन कि नई शुरुआत करती है लहरे तो हर बार आगे कि उम्मीदें दे जाती है
पर नदियाँ के ऊपर तो बांध है बनाता क्या जिन्दगी इस तरह से बांधी जा सकती है कोई प्यार से बांधे तो कभी कभी जिन्दगी रुक भी जाती है पर कई बार वही जिन्दगी तसल्ली दे जाती है
नदी तो वह धारा है जो रोशनी जीवन मे देती है उसे समज लेने मे जीवन कि शुरुआत होती है नदी तो वह सोच है जो हमे सिखाती है वह जीवन कि शुरुआत है जो रुकना और बढ़ना सीखा देती है
नदी जीवन का अलग मतलब जो दे जाती है जीवन को रफ्तार दे जाती है नदियाँ कभी कभी रुक जाती है उसे समज लेने का मतलब जीवन कि रफ्तार को कभी कभी रोकना भी होता है
जो जीवन सोच को भी समजा लेता है कि अपने के लिए रुकना सही होता है मुड़ जाता है वह उस राह पर ही कभी कभी ईश्वर को पाता है नदियाँ कि तरह जीवन मुडना जानता है
वही तो भोलेनाथ कि चोटी नहीं पर क़दमों को पाता है वह जीवन जो हर पल ख़ुशियाँ दे जाता है वह जीवन का कुछ अलग मतलब भी पाता है जिसे हर पल समज लेते है
वह जीवन अलग धारा बनकर दुनिया को नया रंग दिखाता है जीवन कि धारा बनकर ख़ुशियाँ ले जाता है नदियाँ के अंदर अलग एहसास जीवन मे आता है
नदियाँ के अंदर जीवन का एहसास होता है वह बताता है कि जीवन का असर मतलब तो दूसरों के लिए रुकने मे होता है जो जीवन के हर मोड़ को रोशनी देता है
जीवन का मतलब मुड़ जाना और रुकना होता है जो हर बारी दुनिया को एहसास देता है कि ना रुकनेवाला जीवन भी कभी कभी अपनों के लिए रुकता है उन्हें ख़ुशियाँ दे जाता है

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