Friday 9 October 2015

कविता २४५. जाल मे फँसना

                                              जाल मे फँसना
हम जब जब सही कहते हर बार तारीफ़ नहीं होती हम सारी चीज़ों को समज लेते है वह बात जीवन पर असर  सही है करती जीवन को सही करना हो तो सही बात कहना है
पर ग़लत बात का जीवन पर ग़लत असर होता है जीवन मे हर चीज़ समजते है पर आसानी से सही चीज़ का सही फल नहीं मिलता हम इंतज़ार तो करते रहते है
पर कभी कभी सही चीज़ का सही असर नहीं होता जीवन के अंदर अलग अलग चीज़ों का अलग असर होता है कभी कभी जीवन को ग़लत का आसान असर दिखता है
सही सोच के अंदर जो जीवन पर सही तरह का असर जिन्दा होता है पर उसमें अक्सर वक्त लग जाता है जीवन के अंदर अलग किसम का असर ज़रूर होता है
जो जीवन को अलग तरह की सोच देता है पर झूठ का आसान तरीक़े का असर लोगों को लुभाता है मन का बहलाता है जीवन कि ख़ुशियाँ ले जाता है जीवन बदल देता है
सच्चाई के अंदर नई सोच कि शुरुआत जीवन पर असर कर जाती है पर ख़ुशियाँ पाने का मौका अक्सर देर से आता है जीवन के अंदर हर बार उस मौक़े से पहले ही भाग जाते है
जब सही कहो तो इंतज़ार भी हमेशा ज़रूरी होता है जो जीवन पर अक्सर असर कर जाता है सही सोच से जीवन रोशनी पाता है उस सोच को समज लेना मन को भाता है
सही सोच सही दिशा पर धीरे धीरे चलना होता है जो दौड़ पड़ता वह अक्सर गिर जाता है जीवन मे संभल जाना अक्सर ज़रूरी होता है सही दिशा मे चलना मुश्किल हो जाता है
जीवन का मतलब हमेशा सही सोच से होता है सोच के भीतर नया एहसास देता है सही सोच को समज लेते है उस पल जीवन पर अलग सा असर होता है
सही को अपना लेते है तो उस सोच का जीवन पर एक अलग ही असर रहता है वह सही ताकद है जिसमें इन्सान शांति पाता है इसीलिए तो इन्सान अक्सर सही के लिए तरसता है पर झूठ के मीठे जाल मे फँस जाता है

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