Thursday 1 October 2015

कविता २२८ धीमे धीमे से चलना

                                           धीमे धीमे से चलना
धीमे धीमे चलने से जीवन मे मतलब मिल जाता है पर सबको जल्दी से समज लेना ज़रूर नज़र आता है धीमे धीमे जीवन मे अलग किसम का रंग नज़र आता है
पर हर बारी लोगों को समजना कहाँ आसान होता है पर जल्दी कि बात आती है हर इन्सान बस हर चीज़ जल्दी से चाहता है हर इन्सान इंतज़ार से कतराता है
जो इन्सान खुद को समजले वहीं आगे जाता है पर हर कोई खुदको नहीं दुनिया को समजना चाहता है उसमें ही मुनाफा देख पाता है जो वक्त हम दूसरों को देते है
अगर हम वह चीज़ जो दूसरों के ख़यालों के बारे मे हर सोचते है पर अपने ख़यालों को हम कई बार अनदेखा कर देते है जीवन को हर बार धीमे धीमे जीवन के अंदर असर करते है
धीमे से जीवन को जब आगे ले जाते है जीवन मे सबसे पहले खुद को समज लेना चाहते है तब हम जीवन के हर मोड़ को परख लेना चाहते है जीवन पर असर वह ज़रूर चाहते है
जीवन के हर मोड़ हर पल को अलग एहसास बनाना चाहते है जीवन को हर बार समज लेना चाहते है पर खुद से दूसरों मे ही दिलचस्पी दिखाते है खुद को समज लेने कि जगह दूसरों के बातों को सुनते है
हम अपने कपड़े भी ज़्यादा दूसरों के पसंद से ही हर बार है चुनते अपने से ज़्यादा हम दूसरों को ही समज लेने कि कोशिश हर बार हम ज़रूर करते है
काश दूसरों को समज लेने कि जल्दी से ज़्यादा हम अपने आपको ही धीमे से समज लेते तो जीवन को कई बार फुरसत मे समज लेते क्योंकि खुद को धीमे धीमे हम समज लेते है
धीमे से आगे जाना हमे पसंद तो नहीं पर ख़ुशियाँ हमेशा आती है हमारे जीवन मे हर बार और हर मोड़ पर धीरे से और बहोत ही धीमे धीमे से हम समज खुद को धीमे से लेते है
ज़रूरी होता है जीवन मे आगे बढ़ना धीमे धीमे से क्योंकि खुद को समज लेते है और वह काफ़ी होता है हमे हर बार जीने के लिए तो जीवन को परखो धीमे से तभी ख़ुशियाँ मिलती है जीने के लिए

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