Thursday 10 September 2015

कविता १८६. जीवन की तसबीर

                                                           जीवन की तसबीर        
सारी बाते जो जीवन पर असर कर जाती है उन बातों में हम अपनी जिन्दगी न समज पाते है कई बार जो बाते खास न हो वह भी असर कर जाती है
हर बात के अंदर दुनिया की अलग तसबीर नज़र आती है अगर सही हो वह तसबीर तो वह जीवन पे असर कर जाती है वह तसबीर ही हमें सही गलत दिखाती है 
हर बारी जब हम समजे जीवन को तो उस जीवन में वह तरह तरह के रंग दिखाती है तसबीर तो हमें कुछ ना कहते हुए भी सबकुछ कह जाती है 
पर कभी कभी हमारे सामने नकली तसबीर भी खींची जाती है जिसकी बजह से जीवन की दुनिया भी असर कर जाती है वह जीवन को दिखलाती है 
पर कभी कभी गलत तरह की तसबीर भी जीवन को दुश्वार कर जाती है कुछ तो असर जीवन के अंदर जरूर दिखती है 
तसबीर अगर अलग मतलब दिखाए तो जीवन पर वह कुछ तो असर कर जाती है उस तसबीर के अंदर कई बार हमारी अलग दुनिया बस जाती है 
तसबीर अगर नकली हो तो वह नकली दुनिया बनाती है और अफ़सोस तो इस बात का है की वह दुनिया सच्चाई को हम से आसानी से छुपाती है 
अगर हम तसबीर को समजे तो उसके अंदर हम कोई तो दुनिया पाते है उस दुनिया के अंदर हर बार जीवन को आजमाते है 
हर तसबीर के भीतर हम दुनिया का अलग मतलब हम पाते है तसबीर को  समजे तो उसमे हम सारी दुनिया ही बनाते है 
तसबीर की दुनिया नया रंग दिखाती है सही रंग तो वह होता है जो जीवन पर असर कर जाता है तसबीर के हर रंग में जब सच्चाई होती है 
वह तसबीर ही सही होती है जो सच्चाई दिखाती है नकली तसबीर जीवन में कभी ना कभी काम को आती है वह जीवन को सिर्फ उलजाती है 

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