Monday 28 September 2015

कविता २२२. जूठ का जीवन

                                                                 जूठ का जीवन
हर बारी हर मोड़ पर लोगों को भटकते देखा है सही राह पर चलते हुए हर बार लोगों को समजा है पर ग़लत राह पर भी लोगों को जिद्द से चलते देखा है
कितनी अजीब बात है सच्चाई कि तरह ही जूठ भरी रात है सच के अंदर कुछ तो नया एहसास है सच्चाई की जीवन में हर बार अलग ही प्यास है
पर लोग जूठ को समज लेते है जूठ का जीवन में अलग ही एहसास है कभी कभी जूठ में भी जाने क्यों जीवन का एहसास है
लोग जूठ को समज लेते तो उस सोच से बनता नये तरह का एहसास है जूठ जो जीवन में पैदा करता है वह सिर्फ एक प्यास है
पर हम समज नहीं पाते है हम दुसरे ओर ही ढूँढ़ते है बजह का अलग मतलब बनता हमारे लिए कुछ खास है जब जब जीवन में आगे बढ़ जाते है
जीवन में बनता अलग एहसास है जूठ के अंदर भी कभी कभी गलत किसम का विश्वास है जिसे जीवन में परखे तो बनता अलग एहसास है
जूठ की दुनिया में अलग किसम की सोच दिखाती हर बार गलत ही राह है कितना भी सही लगे पर जूठ तो बनता आखिर एक फंदा है
जिसे समज लेना जीवन का अलग ही एहसास है जूठ की दुनिया में होता हर पल नया एहसास है जिस से हर बार मुश्किल बनती है जीवन की हर राह है
जब जब अपना कुछ छूटे तो ढूँढो दिख जाता है उसमें दिख जाता है कोई छोटासा जूठ जो बजह बना वह चीज छूटने की जो खास है
अगर दिल जूठ को बदल दे तो फिर से मिल जाती है वही राह जो सही राह है जूठ के अंदर जब जब हम समजे वह बनता जीवन को कुछ खास है
पर आखिर वह खास दिखनेवाला जूठ ही बनता जीवन की वह राह जो हमारे लिए बनता हर पल एक मुश्किल का एहसास है 

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