Monday 21 September 2015

कविता २०८. बजह

                                                                 बजह
कई बार जीवन मे हम अपने आपको खुल के हँसते हुए देखा है तब तब सोचा है हँसी की बजह को हम कभी नहीं भूलेंगे जब जब हम जीवन मे आगे बढ़ जाते है
चाहे हार हो या जीत उस बजह से दूर नहीं होंगे वह बजह ही तो है जो जीवन को जीवन बनाती है वह बजह ही तो है जो हर पल मुस्कान दे जाती है
मुस्कान तो जीवन मे नई ख़ुशियाँ लाती है जीवन को वह धीरे धीरे आगे ले जाती है पर वह बजह जो जीवन मे मुस्कान लाती है वह उसे क़ायम रख लेना भी सिखाती है
जीवन मे ज़रूरत तो हर पल होतीं है बजह उस ज़रूरत को आगे ले जाती है जीवन मे हर मोड़ पर मुस्कान जो मन कि मुराद होतीं है वह जो दे वही भगवान कि मुरत सी लगती है
कई खाली वादों से दुनिया हर बार बनती है जो एक भी वादा पूरा कर दे उसमें ही इन्सान कि सही पहचान होतीं है जब जब हम दुनिया को परख ले उसमें मुस्कान होतीं है
वह मुस्कान कि बजह तो जीवन दे जाती है बजह जो हर पल मुस्कुराना सिखाती है उसे जो परखे जीवन मे उसके ही समज मे आती है मुस्कान कि बजह तो जीवन बन जाती है
बजह ही है जो जीवन मे अलग अलग रंग दिखाती है बजह ही है जो जीवन मे हमारे दुनिया मे ख़ुशियाँ ले आते है जो बजह बनी जीवन के रोशनी का वह एहसास हर पल लाते है
बजह अगर जीवन के अंदर कोई भी ख़ुशियाँ ले आती है बजह तो जीवन के हर मोड़ पर हँसी देती है वह दुनिया को उम्मीदें देती है वह बजह चाहे जीते या हारे वह ख़ुशियाँ देती है
क्योंकि बजह हँसने कि तो जिन्दगी हमे देती है हर बार हमे जिन्दा रखती है बीन हँसे भी क्या जिन्दगी होतीं है जो हँसने कि सही दिशा देती है हँसने कि बजह मन को तसल्ली देती है
बजह तरह तरह कि होतीं है जो मन को हर बार ख़ुशियाँ देती है बजह जीवन मे हर बार अहम होतीं है बजह हर बार वही सोच देती है ख़ुशियाँ के ख़ातिर ही तो बजह होतीं है

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