Saturday 29 August 2015

कविता १६३. मुस्कान

                                                                मुस्कान
सुबह की हर किरन मे जीवन तो जिन्दा होता है उसकी हर बात मे नयी सुबह का आनंद मिलता है तब अगर उस पल हम हँस देते है तो ख़ुशी भरी सुबह का आनंद मिलता है
पर अगर सुबह को ना हँस दो तो डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि फिर दुपहर को मुस्कुरा दो उस धूप से ही दुनिया महक जाती है कुछ लोगों को सुबह से ज़्यादा दुपहर की धूप भाँति है
उस तरह की सोच जो अलग होती है हर बारी जीवन के नये मौसम मे से अच्छे असर जीवन मे आते है किसी को धूप ही भाँति है पर अगर वह नहीं भाँति है
जीवन मे तरह तरह मौकों पर मुस्कान नहीं आती उसी तरह कभी कभी जीवन मे धूप भी नहीं भाँति कोई बात नहीं अभी भी मुस्कान की उम्मीद नहीं जाती है
जीवन मे उसके अंदर मुस्कान ज़रूर आती है उसके बाद श्याम जीवन मे आती है कभी कभी डूबनेवाले सूरज संग भी उम्मीदें आती है उन रंगों के साथ मुस्कान आती है
कभी कभी उस सीधे साधे रोशनी से ही जीवन में उजाला आता है हम जीवन में नयी सोच का अहसास तभी कर पाते है जब जब सूरज डूबने लगता है उस सूरज के संग हम जीवन जी लेते है उसे देखते रहना चाहते है
उससे ही हम नयी सोच पाते है की हर चीज़ जो प्यारी लगाती है क्युकी उसमे तो हम कई तरह की उम्मीदे और रंग लाते है श्याम के अंदर ही हम मुस्कान पाते है
सारे रंग उसी श्याम में हम कभी कभी नहीं पाते डूबते सूरज को देख हमारी आँखों में आँसू आते है हम चाहते है तब मुस्कान पर भी आँसू आते है
कोई बात नहीं क्युकी चाँद की रोशनी अभी बाकी है सितारों संग अक्सर वह हमें खुशियाँ दे जाती जो सूरज की तेज रोशनी नहीं कर पाती है वह चाँद कर पाता है
चाँद के अंदर की रोशनी मन पर असर कर जाती है जो दुनिया में सुहानी लगाती है वह भी सुंदर है अगर उससे हँसी आती है तो ठीक है
पर अगर चाँद भी ना हँसा पाया तो चिंता की बात होती है क्युकी दिन गुजर चुका है मुस्कान जरुरी है खुद से कह दो अभी हँसना जरुरी है क्युकी हर दिन मुस्कान जरुरी है


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