Friday 28 August 2015

कविता १६२ . सोच का आना और जाना

                                        सोच का आना और जाना
हर बारी जब कुछ कह दे तो अलग असर होता है कभी लोग समजते है हम को कभी कुछ भी फर्क नहीं होता है हर बारी जीवन के अंदर सॉसों का आना जाना होता है
उसी तरह से हर सोच का जीवन में आना जाना होता है जब सोच को समजो तो इसका अलग अलग असर होता है सोच को समजो तो उसका आना जाना होता है
सोच के भीतर अलग अलग खयालों का करवा होता है सोच के साथ चलो तो हर पल कुछ तो असर होता है पर उसी सोच को कुछ वक्त के बाद खोना पड़ता है
क्युकी दुनिया तो बदलती है उसके संग सोच को बदलना भी होता है जब जब हम दुनिया को समजे उसका कुछ तो असर होता है आते जाते लहरों सा वह असर कर के जाता है
दुनिया तो हर बार नई सोच भी लाती है उस सोच के अंदर वह नया अहसास लाती है पर जब कोई सोच जीवन से गुज़र जाती है हम सोचते है वह वापस नहीं आती है
पर जीवन की यह सच्चाई है की हर सोच वापस आती है वह जीवन पर कोई ना कोई असर तो कर ही जाती है उस सोच को समजे तो वह जब चली जाती है
हर सोच के अंदर नये ख़याल होते है जिन्हें हम हर बार समजना चाहते है सही सोच जिसके अंदर ख़याल आते है और खो जाते है पर कभी ना कभी तो लौट के आते है
पर बुरी बात तो यह होती है की बुरे ख़याल भी लौट के आते है जिन्हें हर पल हम जीवन से दूर रखना चाहते है पर क्या कहे जीवन मे तो हमेशा अलग अलग ख़याल हमारी सोच बनाते है
सोच तो आती है ओर जाती है पर जाने के बाद तूफ़ान की तरह लौट के भी वह आती है टिक पाता है वही जीवन मे खुदकी सोच होती है क्योंकि जीवन मे वह अक्सर काम आती है
जो अपनी सोच पे मज़बूत हो उस कोई सोच असर ना कर पाती है अपनी एक अच्छी सोच मे उसकी जिन्दगी कट जाती है सही सोच को रखना ज़रूरी है क्योंकि वह सोच सही दिशा दिखाती है

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