Friday 21 August 2015

कविता १४८. बात पूँछ लेना

                                      बात पूँछ लेना
बात को समजना आसान नहीं फिर भी समजने कि कोशिश मे रहते है क्योंकि नहीं समजे यह मान लेना भी आसान नहीं  होता है पर बेहतर तो वही है
कि हम मान ले दोस्तों की हमे समज नहीं आया क्योंकि बिन जाने चीज़ें समजने का जूठ जीवन मे ख़तरा बढ़ा देता है दुनिया तो ऐसी है के जिसमें हर पल दोस्तों हमे कुछ ना कुछ तो सुनना पड़ता है
तो क्या बुरा है की कह दे सबसे दोस्तों की जिसे समज ही नहीं पाये उसका क्या किस्सा है क्योंकि हर पल समजना तो आसान नहीं होता है हमारे लिए पर कुछ बातों को पूछकर समजना ज़रूरी होता है
जिन्हें समजने से हमारी दुनिया सुधरती है जिन्हें परखने से जिन्दगी आगे बढ़ती है तो क्यूँ न हम हर बात को हमारे लिए समजे क्यूँ न हम कह दे हम समज नहीं पाये है
जीवन मे तो दिखते बस उलझन के साये है जब जब हर बार बातों को हम आसानी से समज लेते है कई बार उसे पूछना ही ज़रूरी लगता है माना के लोग हँसते है
पर सही बात को समजना ज़रूरी लगता है जिस बात को समजना हम पाये उसे हर कदम पर समजना ज़रूरी लगता है जीवन की हर मोड़ पर आगे बढ़ना ज़रूरी है
क्योंकि जीवन नई राह दिखाता है उसे समजना हमारी मजबूरी है हर बार जो हम आगे बढ़ जाये राहों को समजना ज़रूरी है उन राहों से राहत पाना जीवन के लिए ज़रूरी है
जब जब हम जीवन को समजे उसमें बात समजना ज़रूरी है मुश्किल को जब हम ना समजे तो हर कदम बस मजबूरी है हमे समजना है जीवन मे हर बात को समजना ज़रूरी है
सारी चीज़ें जो ख़ुशियाँ दे जीवन मे नया मतलब देती है जब जब हम आगे बढ़ते है जीवन मे नई सोच आती है पर जब पूछेंगे तो ही बात समज मे आती है

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