Sunday 23 August 2015

कविता १५२. तराना लहरों का

                                                           तराना लहरों का
हर तराने के बीच में कोई ना कोई  फ़साना  तो होता  है जीवन को जब हम समजे जिसमे कोई ना कोई अफ़साना होता है
हर लहर के अंदर हमें अलग सोच को अहसास दिखता है हर पल जब हम समजे जीवन को तो मन पर कोई असर पुराना दिखता है
जब हम दुनिया को समजे उसमे कोई असर तो जरूर होता है हम उसे हर पल समजे तो जीवन में कोई असर और अफ़साना दिखता है
तराना तो  हर बार आगे बढ़ना अहम लगता है तो वह अफ़साना जो हमें समजता है जब जब हम आगे बढ़ जाये जीवन में नया तराना सुनने को मिलता है
जरुरी तो बस सुनना है जीवन में तो हर बार नया अफ़साना बनता है अगर हम सुन ले ग़ौर से तो जीवन को नया तराना मिलता है
जब जब हम जीवन को समजे तो जीवन का नया फ़साना बनता है तराने तो कई होते है आगे बढ़ना अहम सा लगता है
जो आगे चलते है सारी दुनिया उसे समजती है हर बारी जब हम आगे चलते है गिर जाये तो भी क्या फिर भी उम्मीद तो मन में रहती है
सारे जीवन को समजना मुश्किल है पर जीवन से ही तो दुनिया बनती है हर नये तराने को जब हम सीखे तो ही जीवन में खुशियाँ मिलती है
आगे बढ़ना तो दुनिया के लिए एक जरुरी उम्मीद बनती है जिसको हम मन से समजे तो दुनिया की सच्चाई दिखती है
जो हर तराने को समजे जो हर लहर संग आगे बढ़ जाये उसकी ही दुनिया बनती है उसे समजो मन से तो ही जीवन की खुशियाँ बनती है 

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