Saturday 22 August 2015

कविता १५०. फलों को चुनना

                                                                   फलों को चुनना
फल जब जब हम चुनते बडे प्यार से हम चुनते है सही तरह के फलों को हम हमेशा ढूँढ़ते है जिन फलों को हमने चुना था
वह हमेशा सही होते है पर जब जब हम फलों को समजे उनमे सही चीजों की जरूरत होती है तो हर बारी जब फलों को समजते है
तभी तभी फलों के अंदर एक प्यास तो जिन्दा होती है जिसे चखना चाहते है हम दिल से पर अफसोस हर बार सही फल हम कहा चुनते है
तरह तरह के फलों के अंदर सही किसम के फल हम कहा चुनते है जीवन में जो हम चुनना चाहे वह सही फल पर हमें कहा मिलते है
जब जब हम आगे बढ़ते है जीवन में कुछ ना कुछ पाते है फलों में अच्छे  तरीके से चुनने पर भी हम गलत ही फल कभी कभी पाते है
फल तो बस वह होते है जिनमे हम सिर्फ सेहत चाहते है जहाँ सेहत की चाहत में भी हम इतनी मुश्किल पाते है वहाँ सोच के अंदर तो कई चीजे होती है
जिनमे हम अपनी दुनिया पाते है तो एक फल तो हम सही ना ढूँढ़ सके हम तो बाकि चीजे कैसे पायेंगे जब जब हम सही ढूँढ़ने निकलते है
अक्सर हमें मिलते है गलत चीजों के साये जीवन में हर सही तो काफी नहीं होता क्युकी जीवन हर चीज के साथ बना है
पर उसी जीवन में हर एक मोड़ हम कोई ना कोई तो सोच को समज पाये जब हम आसानी से बढ़ते है जीवन में मिलते है
हमें अलग से साये तो कभी कभी हम फुरसत में सोचे तो ही सही चीज को समज पाये जीना तो आसान नहीं होता है
जब तक हम चीजों के नहीं समज पाये तो जीवन को कैसे हम समज पाये जीवन तो आसान नहीं होता है पर जो फल को भी सही चुन ना सका
वह जीवन को कैसे आसानी से समज पाये पर कोशिश करेंगे तो जीवन में मिल जायेंगे उम्मीदों के साये जो हर पल मन को भाये 

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