Monday 24 August 2015

कविता १५४. आसानी से समजे

                                                                 आसानी से समजे
हम कभी आसानी से समजे कभी मुश्किलों से समजे पर तूने जो सिखाया है जिन्दगी वह आज तक हर बार हम है समजे मुश्किलों मे भी हमने रास्ते है समजे
चाहे कुछ भी कह दे जीवन को आज तक हम है बडे मुश्किलों से समजे फिर भी जीवन की हर धारा को हम दिल से है हम समजे जैसे भी पर फिर भी
उसे अपनाया तो है जिन्दगी हमें कई मोड़ दिखती जिनको हम चाहते है लेकिन याद नहीं रख पाते है हम तो बस यही चाहते है
की हमें मिल जाये कई साये अफ़सोस तो हमें बस इस बात का है चीजों को जिन्दगी में हम कभी बिन सीखे ना समज पाये पर फिर भी
जिन्दगी तुमसे ही तो अक्सर हमारी उम्मीदे बनी है जिन्दगी हमें तू ही तो समज सकी है जब जब हम जीवन में कही आगे बढ़ जाते है
जिन्दगी तुज से ही तो उम्मीदें पाते है उन्ही के अंदर हम दुनिया पाते है जो आसानी से हमें राह सीखते है पर अगर हम राह को युही सीख लेते
तो जीवन में बस खुशियाँ चुनते होते जब जब हम आगे बढे तो खुशियाँ देती है यह जिन्दगी पर फिर भी लगता है की अगर सीखना न पड़ता तो गम ही नही होते
लालच बुरी बला है मन जानता है जिन्दगी पर फिर भी कभी कभी कुछ ज्यादा ही उम्मीदे रखता है जिन्दगी से चाहता है की वह हमें समजे
चाहता है हम हर बार जीवन को बस चुटकीयो में काट ले हर बार तुज से आसान रास्ता माँगते है जिन्दगी मानते है की हम लालची है
पर फिर भी कभी तो हम सीखते बिना तकलीफ के कोई आसानसी राह भी क्युकी जिन्दगी हम तुम्हे ठीक से समजना  है पर हस कर कभी कभी आगे बढ़ना भी चाहते है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१४७. अरमानों को दिशाओं की कहानी।

                       अरमानों को दिशाओं की कहानी। अरमानों को दिशाओं की कहानी सरगम सुनाती है इशारों को लम्हों की पहचान बदलाव दिलाती है लहरों...