Saturday 8 August 2015

कविता १२२. ग्यानी

                                                                        ग्यानी
हर मोड पर चलते है उस मोड पर रहनेवाले हर परिंदों को समजने की कोशिश भी करते है इन्सान को समजना बडा मुश्किल लग रहा है
तो आजकल फुरसत मे हम परिंदों को ही समज लेते है वह सोच जो हमने थी सही समजी खुद जियो और जीने दो दूसरों को उसे
आजकल इन्सान कहा समजते है दूसरोंकी हर बात पर तोहमत ही लगा देते है इन्सान को समजना हम मुश्किलसा पाते है
जो खुद आसानी से पाना चाहते है पर अगर दुसरे को मिल जाये तो हर पल चिल्लाते है खुद को पाना चाहते है यह समज लिया है हमने
पर जाने क्यू कुछ दूसरों से छिन भी लेना चाहते है जानते है वह खुदा सोया तो नही है हर गुनाह की कोई ना कोई तो सजा जरुर बनी है
फिर भी जाने क्यू हर बार गुनाह कर जाते छोटीसी एक जीत उनके लिये अपने आपको सही समजने का सबब बन जाती है जब के हम
ठिक से दुनिया को समजे तो झूठ कि जीत बार बार नजर आती है
ईश्वर को कोई लोभ नही है वह सबका पालनहार है वह ग्यानी है
सबको मौका है चाहे मन हो या कोई मानी है हर जीत हमारी तोफा है उसका जो पालनहार है हर किसीको मौका मिलता है
पर इसका मतलब यह नही की हम स्वयम् बहुत बडे ग्यानी है हम तो समजे दुनिया को तोफे को जो पदक समजले वह जीवन मे अग्यानी है
हम समजे हर जीत को उस की भेट तो ही मुश्किल रुक जानी है जीवन भर बस जो माँगता रहे वह किस तरह का इन्सान है उसकी बात क्या सुननी है

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१४६. सपनों को एहसासों की।

                               सपनों को एहसासों की। सपनों को एहसासों की कहानी कोशिश दिलाती है लहरों को इशारों की समझ सरगम सुनाती है उम्मीदों...