Saturday 29 August 2015

कविता १६४. अनपढ़ी बातें

                                              अनपढ़ी बातें
कई बार हमने सोचा है जाने कितने खत निकल गये आधे ही पढ़ के जीवन मे यह वक्त की बात नहीं थी पर खत मे कुछ बात अधूरी थी क्योंकि हम समज ही ना सके
ऐसे भी उसमें अल्फाज लिखे थे उस खत के अंदर जीवन के एहसास लिखे थे खत मे तो कई तरह की बातें लिखी थी पर खत के हर मोड़ मे जीवन के कई आवाज़ लिखे है
पर अफ़सोस तो इस बात का है हम वह ज़बान नहीं समज पाये जाने कितने क़िस्से होंगे जो जीवन को एहसास देंगे अगर हर ज़बान हम समज ले तो जीवन को हम समज लेंगे
पर हर बारी जब हम आगे जाना चाहते है जीवन के नये एहसास जगे है पर कई जब ना समजे तो कई दोस्तों के अल्फाज रुके है काश के हम समज लेते हर लब्ज को जो जीवन मे ख़ुशियाँ देते है
पर हर बारी यह मुमकिन नहीं है की हर ज़बान को हम समज पाये इसीलिए तो भगवान ने यह एहसास दिये है जो जीवन को समजा देते है और जीवन मे एहसास दिये है
कभी कभी जब हम जीवन को जी लेते तो चेहरों को एहसास देते है ज़बान के अंदर कई तरह के ख़याल रखे है जिन्हें समजना बड़ा मुश्किल होता है
क्योंकि हमने आजकल बस अल्फाज समजे है चेहरों से भी ज़्यादा सिर्फ़ जुबान से निकले अल्फाज और कागज़ पे लिखे लब्ज पढ़े है जिन्हें हम कभी ना समज पाये वह एहसास चेहरे पे लिखे है
खतों के अंदर जो हम नहीं पढ़ सकते है उसी तरह के एहसास चेहरे पर हर बार लिखे है जिन्हें हम हर पल ना समजते है जीवन के अंदर वह एहसास हर बार लिखे है
पर कभी कभी कुछ लब्ज हम नहीं समज सकते है क्योंकि वह अनजाने है पर फिर भी हम चेहरों से उन्हें पढ़ सकते है क्योंकि कुछ लब्ज मन को प्यारे लगते है
अगर समज सके तो ज़रूरी होते है नये दोस्त बनाते है पर जब हम लब्ज नहीं समजे तो एहसास समजना ज़रूरी होता है इसीलिए तो लब्जों से ज़्यादा एहसास अहम होता है

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