Sunday 23 August 2015

कविता १५१. जीवन के खुशियाँ और गम

                                                             जीवन के खुशियाँ और गम   
फिर खुशियाँ हमें जीवन देती है जो जीवन में उम्मीदें लाती है सारी खुशियाँ जो दुनिया हमें दे देती है सारी खुशियों मन को तस्सली देती है
खुशियाँ जो मन को छू लेती है तो दुनिया को क्यों ना समजे हम जो हमें खुशियाँ देती है जब हमने हस के देखा हँसी से भरी दुनिया दिखती है 
पर जब जब आँसू आँखों में आये मुसीबतों पे हम चिल्लाये तभी लगता है दुनिया कितनी गलत है जीवन में उसे हम समज ना पाये 
पर हर बारी जब हम जीवन में कुछ ना कुछ पाते है खुशियाँ और दुःख जो साथ साथ चलते है जीवन के अंदर जो कुछ होता है 
उसे हम समज ना पाते है शायद मन मे अगर उम्मीदे रखे जिन्हे हम जिन्दा करना चाहते है जब जब जीवन में खुशियाँ आती है 
तब तो उसे थाम लेते है बस उसी तरह से हम गमों को ना थामे तो मन को खुशियाँ देते है पर हर बारी जाने क्यों हम गम को थम लेते है 
जब जब हम आगे बढ़ जाये तो खुशियों को याद रखे तो दुनिया में गम अपने आप ही खो जाते है जब जब हम आगे बढ़ते है 
खुशियाँ रहती है और जीवन में गम घट जाते है पर जिस पल हम दुनिया को समजे उस पल में हम जी जाते है और उसे हम कुछ इस तरह से समजते है 
की हम ख़ुशी या गम पाते है यह तो बस उन्हें ही समजना चाहते है पर हर मोड़ को जब हम समजे तो इस मोड़ को हम खुशियाँ दे जाते है 
मन में तो वह दुनिया रहती है जिसके अंदर हमें खुशियाँ मिलती है हम उन्हें ही ठीक से नहीं समज पाते है हम ग़मों को साथ ले जाते है 

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