Thursday 16 July 2015

कविता ७५. सारी चीज़े

                                                                     सारी चीज़े
सारी चीज़े जो मन को छू जाती है उन चीज़ों में हर बार नयी सोच वह लाती है जिन चीज़ों में तरह तरह की सोच जो मन को छू जाती है
चीज़े जो मन के अंदर हमें उम्मीद दिखाती है हर चीज के अंदर सौ तरह की बजह लाती है हम नहीं समज पाते है जब जब चीजे मन में खुशियाँ दे जाती है
उन चीजों को समजने की वजह यह जिन्दगी बन जाती है हर बार चीजों में जो उम्मीदे लाती है वही चीज़ मेरे मन को छू जाती है
जब जब चीज़े मन के मंदिर में रोज रोज उम्मीदों की ज्योत जगाती है हर बार उस चीज़ को जिन्दगी उम्मीद से सजाती है
शायद वह उम्मीद खो भी जाये पर वह चीज़ उसे याद दिलाती है चीज़ों के अंदर सारी तरह उम्मीद और आशाये वह लाती है
चीज़ों के अंदर उम्मीद हर बार जगाती है सारी चीज़े जो मन में समजदारी लाती है वह चीज़ अपने सपने रखती है पर हर चीज़ जो मन का साथ देती है
सारी चीज़ों में दुनिया जिन्दा होती है पर कभी कभी हम यही सोचते है की वह चीज़े क्या दे जाती है शायद वह आगे जाने की जगह पीछे ले जाती है
हम जब आगे बढ़ जाते है चीज़ो में जो बाते होती है वह हमें सिर्फ पीछे ले जाती है हर बार जो अपनी उम्मीदों को जगाती है
चीजों में बार बार नयी तरह की सोच मन में लाती है वह चीज़े सही है जो जिन्दगी में आगे ले जाती है पर यह चीज़े तो जिन्दगी में आगे लाती है
वह नयी चीज़े होती है जो पुरानी चीज़े कई बार नयी चीज़ों से नहीं जुड़ पाती है तो शायद पुरानी उम्मीदों को छोड़ने से ही नयी उम्मीदे आती है
शायद जो पुरानी चीज़े हमें प्यारी लगती है वह नयी चीज़ों से दूर रख के हमें अनजाने में बार बार तड़पाती रहती है

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