Monday 27 July 2015

कविता ९८. एक प्यास

                                                                       एक प्यास
एक प्यास तो मन में होती है जो हमें उम्मीद देती है मन के अंदर प्यास ही है जो हमें जीवन देती है हर बार जब कोई प्यास हमें छू लेती है
उस प्यास के अंदर रोज रोज नयी सोच जो जिन्दा होती है उसे समज कर हर बार उम्मीद तो प्यास के रूप में पैदा होती है
प्यास तो भीतर से हर रोज कोई ना कोई तो समज दे जाती है वह समजाती है मन को उम्मीदों से भी भर देती है पर बस वही प्यास अगर गलत हो तो आँसू भी दे देती है
वह प्यास जिसके अंदर पूरा जीवन भर जाता है वही जिन्दा रखती है उम्मीदों को और वही उन उम्मीदों को तोड़ भी सकती है
प्यास तो वह चीज़ है जो जीवन में जब आती है इन्सान को ऐसी मदहोशी छा जाती है की सही जगह वह जग जाये तो दुनिया बदल देती है
और गलत जगह आ जाये तो बगीया उजड़ भी सकती है बस प्यास तो वही है जिसमे जीवन को नयी उम्मीद भी दे देती है
हर बार जब प्यास मन को छू ले दुनिया के रंग बदलती है प्यास तो वह चीज़ है जो दुनिया को नया रंग दे देती है जब जब प्यास को महसूस करते है
तब जाने क्यों अपनाते ही नहीं की प्यास तो हमारे मन के भीतर नया उम्मंग भर देती है पर अगर प्यास गलत हो तो मन में कई भरम भर देती है
प्यास तो एक वही कशिश है जो हमारे सर चढ़ कर ही दम लेती है समजो और समजाओ तो ही प्यास संभलकर चलती है
अगर एक बार प्यास जग जाये तो उसे समजकर आगे बढ़ाये तो वह जन्नत देती है नहीं तो वही हमारी और हमारे अपनों की कबर भी बन सकती है
तो प्यास को समजो और खुद को समजो क्यों प्यास सही ले जाती है और अगर वह सही है तो वह ईश्वर के कदमों में जीवन को ले जाती है और जिन्दगी मौत से भी नहीं कतराती है 

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