Friday 24 July 2015

कविता ९२. खुशियाँ और गम

                                                                खुशियाँ और गम
खूबसूरत सी बात कोई जिन्दगी में कभी होती है तो जीवन के डगर में बस खुशियों की बरसात होती है उन खुशियों क़ो एक पल ना जुदा होने दे हम खुशियों के साथ हर बार यही बात होती है
खुशियाँ तो मन को छू लेती है क्युकी हर बार उन खुशियों को समज लेते है हम पर खुशियों से जुदा नहीं होना चाहते है पर भी खुशियों की जन्नत से पता नहीं कभी कभी मायूसी भी पाते है
खुशियाँ तो जिन्दगी की वह डगर है जिस पर ही हम जीना चाहते है पर जाने क्यों गम भी हमारे साथी बनने की ख्वाईश अक्सर रख के हमारे साथ चलते है
हर मोड़ पर हमें खुशियों की तलाश सही है पर आजकल हम ग़मों से भी दोस्ती का सोचते है क्युकी शायद उन्ही के पास है हमारी खुशियों की चाबी जाने क्यों भगवानजी ऐसा करते है
जो अच्छी चीज़ों को काटो के बीच में ही रखते है पर कभी कभी लगता है वह काटे भी तो अच्छे ही है अगर वह हमें ना चुभते है
क्युकी उनके बीच से खुशियाँ मिलती है तभी तो हम जिन्दगी में जीता करते है खुशियाँ तो बहोत जरुरी है पर क्या उनके लिए काटे भी जरुरी है
यह सवाल तो मन में आता है पर जब गुलाब को देखते है तो लगता है काटे जैसे एक बड़ी अहम चीज़ है जो जरुरी है किसी चीज़ को आसानी से हासिल करते है
तो हम कहा उसके लायक बन पाते है सिर्फ मागते रहते है खुशियाँ उनको कैसे संभलकर रखे यह तो गम ही हमें सीखते है
तो खुशियों के चारों ओर जो गम है बसे वही हमें समजाते है की खुशियों में क्या करे हम क्युकी हमारे गम ही तो हमें दूसरों के गम समजाते है
तो खुशियाँ ही नहीं साथ में गम भी तो आते है तो उन गमो से कह दो कोई की वह भूले नहीं  की वह खुशियों का वादा साथ लाते है 

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