Monday 13 July 2015

कविता ७०. अहम चीज़

                                                               अहम चीज़
हवा जो हमें छू जाये तो बहार की ही उम्मीद लगाती है हवा ही तो है जो सन्नाटे में भी उम्मीद लाती है
पर उस खुदाने हवाओं को बनाया है कुछ इस तरह से तो उनकी किंमत हम नहीं भरते है शायद उसी लिए हम उनकी किंमत भी नहीं करते है
जो सन्नाटे में भी साथ दे हमारा उसे भी हम समज नहीं पाते है हर बार आगे बढ़ जाते है शायद उन उम्मीदों पर हर बार खरे नहीं उतर पाते है
हवा तो हर बार हमारा साथ देती है वह भी हमें उम्मीद नहीं लग पाती है हम चाहते उन चीज़ों को जिनमे खुशियाँ हम पाते है
जिनमे सिर्फ चीज़े छू जाती है पर हर बार जब हवा हमें छू जाती है हवा जो हमें प्यारी लगाती है जो सारी मासूम चीज़े जो हम जिन्दगी में पाते है
पर हवा जब हमें छू जाती है वही सोच मन में पाती है जो हम हर बार सोच रहे है हम सिर्फ यही सोचते रहते है
हम बड़ी चीज़ों के पिछे सीधी खुशियाँ खो देते है
हर बार हम बस यही सोचते है की सारी अच्छी चीज़े दुकानों में ही पायी जाती है हवा को छोड़ो मुस्कान भी हमें किंमती है
इसी लिए हर बार हम कुछ चाहते है पर हर बार हम सब कुछ खो देते है हर बार जो हमें पसंद होती है वह सीधी साधी चीज़े प्यारी लगाती है
पर हम जब मुस्कान दुकानो में ढूढ़ते है तो वह मुस्कान हमें प्यारी लगाती है वह मुस्कान और हवा सारी अच्छी चीज़े आसानी से मिल जाती है
अगर हम उन्हें माँगे और उसकी कदर करे तो सीधी साधी चीज़े मन को प्यारी है तो उन चीज़ों की कदर करो जो प्यारी है
किंमत से ज्यादा वह चीज़ चुने जो जिंदगी में अहम और जरुरी लगाती है क्युकी वही चीज़ तो जिन्दगी में सब से अहम है 

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