Thursday 2 July 2015

कविता ४७. आधी अधूरी सोच

                                                           आधी अधूरी सोच
कभी हम पूरा सच कह देते है और कभी आधे में ही चुप रह लेते है इस जिन्दगी में कई बार हमारी जिन्दगी में
हम सिर्फ आधा अधूरा कह जाते है
पर हर बार आधी अधूरी बातों की हर बात बड़ी ही बन जाती है हम जब जब आगे बढ़ते है आधी बाते ही मुश्किल बन जाती है
काश की उनको पूरी करते तो जिन्दगी शायद सुंदर बनती हर बार हम यही सोचते की जिन्दगी को बार बार समजते है
अधूरी बाते कभी ना अधूरी रहती वह पूरी जिन्दगी बनती जब जब कोई बात हो अधूरी काश की वह पूरी बनती क्युकी अधूरी चीज़ हमेशा  से है
वह जंजीर जो जिन्दगी के लिए जरुरी बनती काश की हम तो कुछ समज पाते और ख़ुशी जरुरी बनती हर बार जो आगे बढ़ जाते है
तो ही हमारी जिन्दगी बनती हर मोड़ पर जब हम कुछ तो समजते है पर हर बार दुनिया पूरी नहीं होती क्युकी कई बाते अधूरी होती है
आधी अधूरी सारी बातों में कई मोड़ पर सचाई लाती है हर बार हम यही सोचते है जिन्दगी में आधी अधूरी सोच को हम कभी ना कभी तो पीछे रखते है
पर ऐसा नहीं होता है दोस्तों आधी अधूरी चीज़ मन में घर कर देती है क्युकी कोई कहानी आधी नहीं होती है
कहानी को पूरी करनी होती है
अगर हम वह खुद से लिख दे तो वही सही कहानी होती जो हम हर बार समज जाये वह सही जिन्दगी की निशानी  होती है
आधी अधूरी सोच ही है जो पूरी करनी जरुरी होती है जब हम उसे पूरी करे तो वही सोच हमारी जिन्दगी की एक निशानी होती है
क्युकी वही आधी अधूरी जिन्दगी जब हमे आगे ले जाती तो ही हमारी जिन्दगी सुहानी होती है क्युकी अधूरा काम जब पूरा  होता है
वही जीत की निशानी होती है और अगर उस सोच को आधी ही रख दो तो वही सोच सिर्फ पुरानी  होती है 

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