Sunday 19 July 2015

कविता ८१. बदलती सोच

                                                                   बदलती सोच
तरह तरह की सोच हमारी जो हमें बताती है नये नये खयालों में फिर से नयी दुनिया दिखती है क्युकी हर बार जब भी हम सोचे नयी सुबह लाती है
पर कुछ लोगों की सोच इतनी जल्दी बदलती है की सुबह की धुप भी उतरती नहीं उसे पहले वह सोच बदल जाती है और हर मोड़ पर हम बस यही सोच रखते है
हर बार के सुबह से श्याम तक वही सोच मन में जिन्दा हो जाती है क्यों लोग आसानी से जिन्दगी में बदल जाते है जब जब हम आगे बढ़ते है
सोच हमें समजाती है बार बार बदलना भी जिन्दगी में सही नहीं होता है हर बार जो हम समजे तो दुनिया में बदलावसा होता है
सोच को बदलते रहना भी नयी सोच लाता है हर बार जब जब हम आगे बढ़ जाते है सोच हमारे मन को खुशियाँ दे जाती है
पर हर बार जब हम उम्मीदों से सोचे जिस में नयी दिशा आती है पर जब लोग सोच बदल लेते है हर बार मुसीबतसी दिख जाती है
हम बार बार सोचते रहते है और दुनिया बदल ही जाती है पर सिर्फ हम चाहे इसलिए लोग वही सोच रखे यह जरुरी तो नहीं है
क्युकी हर बार हम अपनी सोच बदलते जाते है उस सोच को हम समजे जिस में दुनिया हम पाते है हर बार बस यही सोचते है
की सारी सोच हर बार जो बदल जाती है हमें वह चीज़ भी अपनानी पड़ती है सोच हर बार वह सोच असर कर जाती है
सो बदलती सोच हमें बार बार वही पर लाती है पर लोग अगर सोच बदले तो जिन्दगी हर बार बदल जाती है और नये तरीकों से हर बार उम्मीद लाती है
पर अगर बार बार हम उसे बदले तो हमें लगता है उस सोच को अनदेखा कर के हम अपनी सोच पर ही चले इसी में अकलमंदी नज़र आती है 

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