Saturday 18 July 2015

कविता ७९. बातों को समजना

                                                                बातों को समजना
हर बात को समजो कई चीज़े जो हम पर असर करती है क्युकी हर बार किसी बात के अंदर कोई ना कोई बात होती है
हर बात के अंदर कई तरह की बाते छुपी रहती है बातों के अंदर कई चीज़ों का असर होता है जिन्हे समजना हर बार है  हमें  पर कोई ना कोई राह को हम अलग तरीकेसे समजते  है
उन बातों में नयी नयी सोच बार बार हम पर असर कर देती है बातों में हमें सोच का असर दिखता है उस सोच में जिसमे इन्सान जीता है
जब जब हर मोड़ पर अलग अलग तरह की सोच हम पर कोई ना कोई नया जिन्दगी का असर कर जाती है जब जब हम नयी सोच रखते है
सोच हम पर असर कर जाती है सारी सोच जो हमें अलग अलग राहे दिखती है क्युकी राह की नयी सोच हर बार असर कर जाती है
बातों के बीच में कोई ऐसी बात हो जाती है की अक्सर जिन्दगी अलग दिखने लगती है और हर सुबह रात की गोदी में समा जाती है
हर बार जो राह हम माँगे उसे हम ना समज पाते है बातों के अंदर जो छू जाती है ऐसी भी एक बात छुपी रहती है बातों में कई मतलब है
जो हम पर असर कर जाते है उनमे हम बस यही समजते है की उन अंगारों में हम कैसे जी पाते है जब जब हम आगे बढ़ते है
बातों को ना समज पाते है उनके असर  जिन्दगी को बदल जाते  है क्युकी हम उन बातों को समज नहीं पाते है
पर अगर हम उम्मीदों को समजे तो अंधेरे में हम रोशनी पाते है बातों के अंदर हम हर बार कोई ना कोई बात समज जाते है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१४७. अरमानों को दिशाओं की कहानी।

                       अरमानों को दिशाओं की कहानी। अरमानों को दिशाओं की कहानी सरगम सुनाती है इशारों को लम्हों की पहचान बदलाव दिलाती है लहरों...