Friday 17 July 2015

कविता ७७. उम्मीदों की आहट

                                                                 उम्मीदों की आहट        
हर सोच के अंदर देखो तो एक नयी सोच छुपी होती है सन्नाटों में भी उम्मीद की आहट लिखी होती है
जब उम्मीद से देखो आप तो हर मोड़ पर एक राह खड़ी होती है जो हमें समज जाये वह उम्मीद बसी होती है
उस सोच को हम समजो तो दिल में तस्सली होती है वह राह तो सही है जिस में कई तरह की राहे तो वही है
जिनमें उम्मीद बसी होती है उन राहों को कैसे समजे जिनमें उम्मीद नहीं होती पर जिन्दगी की वही जरूरत यही होती है
जिस में हर बार कोई ना कोई आशा बसी होती है सारी उम्मीदों में नयी नयी सोच जब मन में जगा देती है
उस सोच को समजो जिसमें उम्मीद रहा करती है जब उम्मीदों को समजो तो सारी दुनिया नयी तरीके से दिखती है
पर जब हम समजो दिल को मन में वही उम्मीद रहा करती है जिसके अंदर ही दुनिया बसा करती है
पर कभी कभी वह उम्मीद नयी सोच में भी जगा करती है वह उम्मीद उन सितारों में नयी दुनिया दिखा देती है
पर जब उलटी सोच भी जगे मुसीबत दिखा करती है उस सोच में नये नये खौफ जगा करते है उसे समजते है
तो नये तराने बना करते है उस सोच के अंदर ही नये अफ़साने जगा करते है जिस सोच को हम समजे उस में नये फ़साने बना करते है
अगर गलत सोच को हम समजे तो मन में काटे चुभा करते है पर किस सोच को हम समज लेंगे यह तो बस हम तय किया करते है
पर फिर भी कभी कभी उन सायों में फसकर हम गलत सोच को ही जिया करते है जो सोच सही होती है
उसे हर बार समज लिया करते तो शायद बस उम्मीदों के किस्से कभी मन से ना खो जाया करते जो सोच हमें जन्नत दे हम बस उसमे जिया करते है
हमें लगता है बस उस पल में ही हम सचमुच जिया करते है उसके बिना तो सिर्फ अपने लिए मुसीबत किया करते है क्युकी वही सोच उम्मीदों की आहट दिया करती है 

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