Saturday 27 June 2015

कविता ३८. एक ही सोच

                                                              एक ही सोच
क्या कहे जब लोग अपने दिल की बात सुनते है बिना कुछ कहे हमारे अल्फ़ाज़ कहते है जो हमे समज सके वह
कई बार अनजान लोग भी होते है
जब कोई हमारे तरह जिन्दगी जी लेता है वह हमे आसानी से समज जाते है हर बार हम उम्मीद करते है वह हमें समज जाये जो हमारे साथ रहते है
पर यह जरुरी तो नहीं है जो हमारे साथ रहते है वह भी हमारे जैसे ही जीए अगर हमारी जिन्दगी उसी तरह की ना हो तो हम क्या बात समजेगे
जो हमारी तरह ही जीता है वही शायद हमे समजता है माना हालात अलग अलग होते है पर कभी कभी हम सोचते है की शायद
उस खुदा ने बनाई है कुछ अलग ही दुनिया पर सोच हम वही रखते है अगर सोच हम सही तरह की सोच रखे तो ही हम दुसरे को समज पायेगे
जिन्दगी के हर मोड़ पर हम वही सोच समजते है जो हम हमारी जिन्दगी में हर बार जो समजते वह अक्सर जिन्दगी को हमारी समजते है
 बार बार हम यही सोचते है की हम समजेगे दुनिया को पर हम बड़े मुश्किल से खुद को ही समजते है तो कैसे हम दुनिया को समज पायेगे
जो अपने तरह जीते है वही शायद हमे समज पाये रहते है कहा उसे कोई फर्क नहीं होता सोच वही हो तो झोपड़ा और महल अलग नहीं होता
इन्सान अपनी सोच से बनता है दोस्तों जो हमारी तरह सोचे वही हमारी तरह जिया करता है तो सिर्फ सोच ही आखिर कोई मायने रखती है
वही हमे आगे ले जाती है और संभालना सीखती है सोच तो बस हमारी एक सोच है दोस्तों जो हमारी जिन्दगी को बनती है
और वही हमे जीना सीखती है आसान नहीं किसीको समजना दोस्तों पर जब एक तरह की हो तो वह हमे छोटी छोटी अलग बातों से तोड़ती नहीं है
वह हमे कुछ उस तरह से जोड़ती है दोस्तों की हर बार हम अपनी सोच इनके साथ मिलती हुई पाते है रहने की जगह जोड़े या ना जोड़े दोस्तों ख़याल हमे जोड़ते ही रहते है 

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