Monday 22 June 2015

कविता २८. है जरुरी

                                                              है जरुरी
हर बार तू करिश्मा दिखाये यह जरुरी तो नहीं कभी तू कर देता है पर कभी हमे करना भी है जरुरी
पर मन नहीं मानता के यह है तेरी मज़बूरी सोचता है काश तू समज पाता है यह कितना जरुरी
पर कभी कभी लगता है हम आसानी से कर लेते  हम ही बैठे रहते है और बनाते है उसे मज़बूरी
जो काम हम चंद लम्हों में कर लेते उसी काम को करना मुश्किलसा होता है जब हर मोड़ पर जरुरी
तेरा साथ लगता है पर फिर हम सोचते है यह हाथ जो चलते है वह तू ही चलाता है तो क्या है मज़बूरी
हर बार जो आगे बढ़ जाते है हर बार अपने मन से हर बार सोचते है आगे बढ़ जाते है पर उसमे भी उसका साथ है जरुरी
हर बार जब सोच से आगे बढ़ते है वह सोच तेरी देन है जो है बहोत जरुरी तेरी हर मदत  पर आगे  जाते है पर क्या उस बात को समजना नहीं है जरुरी
हमे भी कुछ करना है धीरे धीरे आगे बढ़ना है हर बार तेरी मदत को समजना है हर बार समजना है जरुरी
हम हर मोड़ पर सोचने लगे है की जिन्दगी में आसान रास्त्ता है जरुरी पर उस मुश्किल मोड़ पर भी हम चलते है तो उसका साथ होना है जरुरी
जब हम हसते है हमारी हँसी में वह खड़ा है जब रोते है वह आँसू पोछता है पर फिर इंसान की ख़ुशी कोसते है हम
क्या यह समजना नहीं है जरुरी
हर राह पर हर मोड़ पर चलना है मज़बूरी तो हर मोड़ पर चलते जिस पर दिखते है कई मंजर उन्हें समजना है जरुरी
हर बार हम जिस राह पर चलते है उस पर चलना अहम है हमारे लिए जिन्दगी की हर राह पर सही तरह से चलना है जरुरी
तो खुद से चलने की मजबूरी को क्यों ना समजे हम क्यों की हम खुद से नहीं हर  चलते है बस उस खुद की मदत से क्युकी वही तो है हमारे लिये जरुरी  

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