Sunday 14 June 2015

कविता १२. उन वादियों में

                                                उन वादियों में
हम ने भी आजकल कुछ अजीब से सपने देखने लगे है अनजान राहों पर कभी कभी रुकने लगे है
जहा जाने से कापती थी रूह हमारी उन्ही वादियों से दोस्ती का सोचने लगे है कब तब डर को यही रखे है
अभी उसे भूल जाने को चाहते है हर बार हम यही सोचने लगे है की हम जिन्दगी वह मौका देते है
जिस पर हर बार यकी ना किया करते है वह जो जसबात जिन्हे हम ना समज पाये है
क्यों ना उन्हें ही मौका दे इस सोच पर हम उन्हें वादियों के परिदोने हमे इस तरह से पुकारा है
हमे दिल की सोच पर एक इशारा लगे की शायद वह वादिया हमे कुछ पुकार रही है और
फिर चुपके हम जहाँ गए थे कभी अभी उन्ही वादियों में जाना भाने और सुहाने लगा है
वह सारी वादी कुछ अलग सी लगी उनकी आहट कितनी थी नयी हमे नहीं लगता है
वादियों में सुन्दर अहसास था बस यही उन वादियों में खूबसूरत और खास लगता है
सारी वादियों में हर जगह हमे कशिश सी दिखी आजकत हमने ना देखी थी वह कसक है
क्या हम डर के रुक जाए यही पर उन वादियों ने हमे वह मौका दिया ही नहीं हर बार है
कहता हमारा दिल यही वही वादिया हमारी उम्मीद है पर यह सोचने को ना रुके है
हम कभी क्यों की वादियों में जाये उन वादियों ने यू पुकारा हम को की हम सब कुछ भूल गये है
हर बार बस उस वादियों में जाते है कही ये एक नशा तो नहीं पर नशा तो उसे कहते है
जिस में गुनाह हो और जिसमे कुदरत की देन हो वह वादिया कभी गुनाह होती नहीं है
जो उन्हें समज ना पाये उन्हें छोड़ के हम हर बार उन वादियों में जाते रहे है जो सही है
वही जान पाते रहे है दोस्तों  तुम भी खो जो इसी वादिया कोई ताकि सच्चाई तुम्हारा जानना जरुरी है

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