Saturday 20 June 2015

कविता २३. ख्वाब जो मंजिल बने

                                                         ख्वाब जो मंजिल बने
हर बार नयी सुबह हमे कुछ तरह के सपने हमे दिखते है हर बार हम जब आगे बढ़ते है तो वह सपने
हमे हर बार उम्मीद देते है उस जगह जहाँ से हम वह ख्वाब पाते है वही कई सपने हम देख पाते है
वहाँ सपनों का बड़ा खजाना होगा पर उन में से कौनसा सपना सही होगा एक सपने में ही हर बार
कई मोड़ दिखते है कई सपने उसी ओर हमे मिलते है सपनों के उस सफर में हम कुछ सपने चुनते है
पर मुश्किल तो यह है हाले के लिए की वह समज नहीं पाता है किस सपने को वह चाहे हम आसान सपने
को कुछ इस तरह से चुनते है की हमे  जिन्दगी में कोई मंज़िल तो मिले पर वही सपने बरबादी की
कगार पर हमे हर बार लाते है उन सपनों में कई बाते इस तरह की होती है जो आसान नहीं होते है
कई तरह के सपनों से हम आसान तरह के सपने हमे दिखते है पर उन सपने में कुछ सही है पर
कुछ गलत से लगते है कई तरह के सपने आते है और जिन्दगी में जाते है पर कुछ सपने दर्द बन जाते है
कुछ को तो खोने का गम भी नहीं पर कुछ अंदर से हमे रुलाते है सपनो के कई मोड़ पर हम हसते है
और मुस्कुराते है पर जब कुछ ख्वाब टूट जाते है कई सपनों में से हम चुनते है कुछ कभी कभी लगता है
हम यही गलत करते है अगर हम छोड़ दे मुकदर पर क्या सही और क्या गलत यह सोचना हम छोड़ दे
उसके ऊपर तो हम सही सपने चुन लेते हम समाज जाते हर बार अपने आप को क्या सही है
यह हम समज तो पाते है कई मोड़ पर सपनों में जो बात हम सपनो में चाहते है इस से हम सच में भागते है
क्युकी आसान नहीं लगता वह सपना हम मुश्किल ख्वाब को न अपनाते है हम सिर्फ एक बात चाहते है
कई सपनों में कुछ बात सही है मगर आसान सपनें भी आसान ना होते है सपने जिन में जिन्दगी है
वह सच में कभी कभी बहोत मुश्किल होते है और मुश्किल ख्वाब कभी कभी आसानी से मिलते है
तो जिन्दगी बस यही सिखाया है हमे ख्वाबों  को ना बाटो दो हिस्सोमे जो आसान लगे इसे अगर पा न सको
तो मुश्किल के ओर देखो शायद यही मुमकिन है की वही हासील हो हमे  जो मुश्किल लगे वही आपकी मंजिल बने 

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