Monday 29 June 2015

कविता ४२. ख़ुशी

                                                                    ख़ुशी
ख़ुशी वही नहीं जो हर बार हसाये हमे कभी कभी वह भी होती है जो हसाये किसी ओर को ही
ख़ुशी वही नहीं होती जो हर बार हमारी होठों पर मुस्कान लाये कभी कभी आँखों में आँसू लाये वह भी होती है ख़ुशी
हर बार हम उसे किसी से जोड नहीं सकते परिंदे की तरह आजाद होती है वह है हमारी ख़ुशी जो हर मोड़ पर उड़ती है
कभी ना रूकती है ना ठहरती है ऐसी आजाद होती है हमारी खुशियाँ सभी ना उन्हें हँसी जोड़ सकती है ना गमो से डरती है वह होती है ख़ुशी
कितनी भी मुसीबत हो पर फिर भी हमारे घर पर दस्तक देती है ख़ुशी बल्कि जब वह आती यही है मुसीबते भाग जाती है
उसी अहसास को कहते है हमसब ख़ुशी अगर हम चाहे तो भी बांध नहीं सकते क्युकी कभी एक जगह पर रूकती ही नहीं है ख़ुशी
वह तो एक परिंदा है जो एक डाली से दूसरी डाली पर जाता घूमता रहता है क्युकी सबसे जरुरी है हमारे लिए हमारी ख़ुशी
वह एक सोच है जिस पे ना कोई रोक टोक है किसी के भी कहने आती जाती नहीं है ख़ुशी वह तो  बस घूमती है हर डाली पर जाती है
क्युकी हर मोड़ पर मन को बहलाती है ख़ुशी हर कोई बस उसी के इंतज़ार में खड़ा है पर बता नहीं है किसीको  कब कहा मिलेगी ख़ुशी
काश हम यह समज पाये की जितनी हमारे हिस्से  में है उतनी ही हासिल होगी हमे हमारी ख़ुशी पर हम सब यही सोचते है की
हमे ही कमानी है हमारी ख़ुशी अगर कमानी भी है तो सिर्फ दुःखोंमे भी हस दो तो मिल जाये ही ख़ुशी अगर मुमकिन नहीं है तो शिकवा है कैसा इंतज़ार करो तब तक जब तक आती नहीं है ख़ुशी 

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