Friday 19 June 2015

कविता २२. कश्ती

                                                                   कश्ती                                                     
जो हमने कहा था क्या उन्होंने समजा हमें लगता है वह अलग था पर वाह उन्हों ने कितना सही समजा
अक्सर जिन्दगी में हमने देखी है हर बात हमारी सही नहीं समजी जाती पर आजकल खुदा कुछ ऐसा
मेहरबान है की बात सही में बदल जाती है मुसीबत तो जिन्दगी में आती है जाती है पर जब कोई बात
को इस कदर सही से समजे तो दिल को ख़ुशी होती है हम कुछ कहते है और बात बदल जाती है हम तो
सिर्फ कश्ती को चलाना चाहते है और वह तूफ़ान से गुजर जाती है कभी नहीं हम सोचते है की हमारी बात
कभी इतने मायने रखेगी पर जब कश्ती तूफानों से गुजर जाती है तो अहसास यह ले आती है की शायद ऐसा
भी हो सकता है की हम किसीको हौसला दे तो वह इन्सान लढ भी जाये अच्छा लगता है जब अपना जीतता है
हमे उसके जीत में ही अपना सपना दिखता है हमने कभी न सोचा था के इस तरह की जीत होगी के हमने तोड़े थे पत्थर तो
हमारी हार होगी और हम जब सिर्फ कुछ कहे तो उस में जीत होगी यह तो है करिश्मा उस ईश्वर का
जिस के हाथ में हमारी हार और हमारी जीत होगी क्युकी कभी इसने कहा नहीं है की कब हमारी हार और
हमारी जीत होगी हार को अपना के उसे इतने पास रखा हमने अपने दिल के की अब दिल में इस तरह की चोट
होगी
के जीत पर अजरज है और हार में ही सच्चाई दिखेगी पर क्या होता है हमारी सोच से जिन्दगी में उस उपरवाले
साथ हमने जो रखी है वही सोच चलेगी हर राह में हमेशा सच्चाई की जीत होगी हर कदम पे नये तराने
और हर कदम में नयी सोच होगी जब हम आगे बढ़ जाये तो जिन्दगी में नयी उम्मीद लिखी होगी जो
हमने सोची ना होगी ऐसी नयी कहानी भी होगी हम  जो डरते है उस वजह की निशानी भी ना होगी
कोई हमे डराये और हम डर जाये ऐसी कहानी न होगी क्युकी अगर आज कोई अपना जीता है तो उसकी जीत
में भी
हमारे जीत की निशानी तो होगी क्युकी खुद जीतने सिर्फ इन्सान जीतता है पर दूसरा जीत जाये तो हमारा भगवान जीतता
दूसरों को जीत में ही जीत उस खुदा ने दिखाई जब अकेले जीते तो सिर्फ तन्हायी ही पायी तो अपना जीत जाये
उसी में ख़ुशी पायी जब वह कश्ती तूफान को पार कर गयी तो लगा सौ हारो के बाद हमने हमेशा के लिए सिर्फ जीत पायी 

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