Wednesday 17 June 2015

कविता १८. हसने की आदत

                                                      हसने की आदत
तेरी हर बात पे हम मुस्करा देते ऐसे भी कई दोस्त ज़माने में थे पर जिन्हे फ़सानो में खो दिया हमने
क्युकी ज़माने के गमो में खो गये वह लोग हसना  तो इस कदर भूल चुके थे उन्हें देखा तो
इस तरह लगा के उन्हें हसे ज़माने हो गये हमे तो रोने की आदत थी पर जिन्हे हसने की आदत थी हमें
दुःख है की वह हसना भूल गये जो जीने को हसी मानते थे आज फुरसत में भी थोड़ा हसना भूल गये
हम जो हसते है तो भी अजरज से देख के हमारी ओर  वही हमे हसने की बजह पूछने लगे
जो कहते थे हसना ही जिन्दगी है आज हसने की बजह ढूढ़ने लगे है और  हर बार हमने देखा है उन्हें
छोटी छोटी मुश्किलों पे रोते हुए क्या सीखना था उन्हें इस जिन्दगी से और गलती से वह  गलत सीख लिये
बार बार मिसिबत में जो जिन्दगी ने डाला उन्हें वह हार से समजोता कर के बैठ गये बात निकले
तो बात करे रोने की हसना जैसे किनारे पर छोड़ चुके पर हमने तो देखे कई मुक्काम ऐसे जिन पे
हमने नये लोग दिखे जो आँसू को भी मशाल बनाकर जिन्दगी से लढ गये वजह बता नहीं  है हमे
पर हम कैसे ही लोगो में अपना दोस्त ढूढे मानते है दोस्त को छोड़ते नहीं पर जो सिर्फ रोना समजाते  है हमे
कोई समजाये हसना उन्हें समजाये कैसे कुछ लोग कभी हसते है और कभी रोते है वही सही दोस्त होते है
पर कुछ लोग दुःख से सिर्फ रोते है वह भी दोस्त हो जाते है पर जो हसने की आदत को बदल के रोने लगे
वह भला कैसे दोस्त होते है क्युकी वह रोने को ही सही समजते है और हमे हर पल सिर्फ रोने के लिये
समजाते है रोता तो हर कोई है दोस्त पर उसे सही समजता नहीं उसे हसी में बदलने के लिए हमारे
सारे दोस्त तरसते है पर कुछ लोग समजते है की रोना ही सही है तो उन्हें क्या समजाये
हम तो सिर्फ यही समजते है की हर बार हसी बड़ी अहम है रोने पर कोई तोफाह तो मिलता नहीं है दोस्तों
तो फिर हम हार को क्यों अहम मानते है हमे ढुढ़नी होगी मंजिले कई पर हम हार को ही इशारे समझते रहे
तो कैसे जीते गे कभी अगर हम हार को ही गलती से अपनी किसमत मानाने लगे
कोशिश सिर्फ एक लब्ज नहीं एक तपस्या होती है जो भगवान भी तो देते है फिर हम इन्सान क्यों कतराते है
समजो के यह राह आसान तो नहीं पर चाहे तो पार कर लेंगे अगर आप और हम साथ हो दोस्तों तो कई मुश्किलों से भी लढ लेंगे 

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