Wednesday 24 June 2015

कविता ३१ . पत्तो की आवाज

                                                                पत्तो की आवाज      
हरे पत्ते सरकते उनकी आहट हमे भाती है उस आवाज से मन को तस्सली देती है उन पत्तो की आवाज मन को
बहोत ख़ुशी देती है
वह पत्ते जो मन को ख़ुशी देती है सारे पत्ते उनके पिछे कुछ ना कुछ छिपाते है पत्तो के पार जो कुछ भी होता है
उन पत्तो के पार हर बार कुछ ना कुछ छुपा होता है क्युकी पत्ते हमे हर बार ख़ुशी और तस्सली देते है
पत्तो के दुनिया में हम नयी बात  जरूर पाते है पत्ते जो भी हमारे मन को ख़ुशी  और शांति देते है
पत्तो से हमे कभी कभी परिदों की आवाज भी सुनायी देती है पत्तो की दुनिया में हम हर बार नयी ख़ुशी पाते है
छुपे हुए परिंदे हमारी आवाज मधुरता से सुनते है और परिंदो की मधुर आवाज हम हर बार सुनते है
उसी तरह दुनिया में मासूम आवाज वही परिंदे भी सुनाते है हर बार उनको सुनकर हम मन को बहलाते है
सारी आवाज मन की मासूम सोच दिल को तस्सली देती है मन को ख़ुशी हर बार और प्यारी सोच देते है
पत्ते आज भी वही है कल भी वही थे तो हमारी और हर किसीकी कहानी जानते है बताते नहीं किसीको पर जानते है और समजते है
हर सोच को हमारे आसानी से सुन पाते है पत्तो की खूबसूरती वह हर बार जानते है हम बस यही चाहते है
की वह हर बार सुने हम को पर वह कभी कभी ही मानते है क्यों की कुछ पल्लो को वह अपनी बात समजाते है
कुछ कुछ पल्लो को खूबसूरत देती है पत्तो में से कोई आवाज हम हर बार मधुर और नाजुक आवाज सुनाते है
पत्ते सरसराते है और मधुर आवाज हर बार पाते है वही आवाज जो हम हर बार उन्हें सुनाते है
पर कभी कभी वह हमें भी सुनाते है हर बार उनकी आवाज सुनने के लिए हम खिड़की में दौड़ कर जाते है
बार बार सुनते है उनको पर समज न पाते है पर फिर भी उन्हें सुनते है इसी उम्मीद पर के एक दिन उन्हें समज पायेगे आखिर वह तो सिर्फ पत्ते है
उनकी जबान अलग है यह तस्सली तो मन में पाते है क्युकी आज कल तो इन्सान भी कुछ कुछ इस तरह से कहते है
की उनकी जबान इतनी गलत और अलग लगती है की लगता है हम परिदों को समज लेंगे , पत्तों को समज लेंगे पर इन्सान को ना समज पाते है 

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