Friday 12 June 2015

कविता ८ आवाज

                                                          आवाज
फूलोंने कुछ सुनायी मन में कभी कभी आयी वह बात बड़ी अजीब थी जो हवा ने चुपके बताई
बता नहीं क्यों उन्होंने वह बात दोहरोई क्युकी  बड़ी अधूरी सी वह कहानी थी जो इन्होने बताई
कभी कभी लगता है कोई दास्तान उन्हें बतानी थी हर मोड़ पर हमे समजनी थी पर शायद ना बताई
जल्दी क्या हमने सोचा क्युकी फूलोंकी वह खुशबू हमे बहोत भायी थी किसीने उसमे मिट्टीकी खुशबू थी मिलाई
पत्तोकी सरसराहट हमे हर पल ये बताये चुपके कोई कोयल शायद गाना हलकिसी आवाज में गाए
सावन की उस आवाज को हम हर मोड़ पर आसानी सुन पाये हर मोड़ पर उसे कोई ना रोक पाए
गाड़ी की आवाज के उपर भी उस कोयल ने बड़े प्यार से गा गा के उसकी मधुर आवाज हमे सुनाई
हम यही समजे की अगर हम थान ले तो दुनिया में हमारी आवाज कोई ना कभी रोक पाए
नन्ही सी कोयल अगर उस गाड़ी से भी लड़ जाए तो हम में क्या कमी है जो हम अपनी आवाज ना सुना पाए
पत्ते भी ना हारे किसी मोड़ पर भी कितनी बार फेको वह हवा के सहारे आँगन में फिर से आए
हमने कितने  मजबूत छाते चूनके थे ले आये फिर भी दोस्ती कर के पवन से बारिश हमें भीगा के जाए
उन्हें ना कोई रोके तो हमे कोई क्यों रोक पाए जब हम सही है तो हम क्यों ना कुछ मांगे और क्यों ना उसे पाए

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