Thursday 25 June 2015

कविता ३३. जिन्दगी का तोहफा

                                                          जिन्दगी का तोहफा
हर बात अगर पूरी हो जाती तो कितनी आसान हमारी जिंदगी हो जाती पर फिर उसे जीने में भी शायद इतना मजा ना होता इसलिए ही खुदा तूने अधूरी अधूरी यह जिन्दगी बनाई
हर मोड़ पर हम जो इसे पूरा करना चाहे तो भी यह पूरी ना हो पाये ऐसी मज़बूरी बनाई
हम सोचते है की हम जो है उसमे रह लेंगे पर तुमने ही इस में नयी प्यास जगायी बड़ी आसान जिन्दगी तो थी बनाई
पर उसमे तुमने नयी राह बना दी जब सीधे ही जा रहे थे पर तुमने वह मोड़ है लाये जिन्होंने हमारे लिए नयी मंज़िल थी बनाई
हर राह पर हम चलते है वह आसानसी लगी जब तब तुमने उसमे नयी प्यास ना जगायी सीधी थी जिन्दगी हमारी तूने टेडी मेढ़ी क्यों बनाई
हर राह से हम गुजरे कुछ इस तरह से के हमारे समज में ना आये जो सीधी राह हमारे लिए मुश्किल क्यों बनाई
हम सोचते रहे बस यह की जिन्दगी में सही राह हमारे लिए माना की तुमने चुनी है पर तूने वह राह आसान भी नहीं बनाई
जिन्दगी हर मोड़ पर जो नयी चीज़ तूने लायी हम उसे देखते ही रह गये क्या यह हमारे लिए सही है या फिर क्या यह तूने हमारे लिए बनाई
जब छोटीसी चीज़ मागते थे तो वह तो तू नहीं दे पायी अब इतनी बड़ी बात क्या तूने हमारे लिए की और हमारे लिए बनाई
आसान रास्त्तो पे तो तुमने मुश्किलें ही दिखायी तो क्या तू सचमुच हमारे लिए अब इतनी खुशियाँ है लाई
हर बार इस तरह से सोचते रह गये हम और तू आगे बढ़ती जाये जिंदगी तेरे तोहफों को शायद हम समज ना पाये
तू हर बार जब रोकती थी हमने उस पल सिर्फ तेरा इन्कार देखा है पर आज तेरे तोहफों से कभी कभी बिना बजह हम कतराए
तू हमे समज लेना जिन्दगी क्युकी हम तुम्हे आसानी से ना समज पाये तूने ही तो हमे बनाया है तो ही अब हमे सजाए 

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