Friday 19 June 2015

कविता २१. जिन्दगी एक किताब

                                                         जिन्दगी एक किताब
काश के कभी हम जिन्दगी को समज पाते काश की जिन्दगी एक किताब नहीं सिर्फ एक पंक्ती बन जाती
हम आसानी से आगे जिन्दगी में आगे आते अगर जिन्दगी को अहम आसानी से समज पाते
पर फिर सोचते है की हर बात अगर इतनी छोटी बन जाये तो उसे बड़ा करने में ही हमारी सारी उम्र निकल जाती
और फिर से वह एक किताब बनती जिस में मन की ख़ुशी नहीं पाते  हमारे लिए जिन्दगी बड़ी अहम हो जाती
फिर लगता है जिन्दगी बड़ी अच्छी बन जाती अगर वह अपने मर्जी से चलती पर फिर सोचते है की
कई बार जिन्दगी में हम गलत बात मागते है हम खुद ही नहीं समज पाते के हम क्या चाहते है की
फिर हर बार हमने देखा है की जिंदगी बड़ी दिलचस्प किताब है जिसके हर पन्नें पर कोई कहानी लिखी है
कभी कभी लगता है यह किताब क्या बुरी है जो किस्मत में लिखी है हर बार जब हमने जिन्दगी में देखा है
सारी खुशियाँ हमारे जिन्दगी में आये सिर्फ इसी वजह से क्यों की हम उसे नहीं चलते है कई बार हमने देखा है
हम गलत ही मागते है हम नहीं समज पाते क्या सही है हमारे लिए जब जिन्दगी में हम आगे बढ़ जाते है
जब वह किताब उस उपरवाले ने लिखी हो तो ही हम उसे सही पाते है हर पन्ने पर लिखी हुई चीज़ों पर है
कई बाते हम जिन्दगी में है हर बार कई ओर हम है पाते जिन्दगी के हर मोड़ पर खुशियाँ हर ओर हम है पाते
उस किताब में हर बार हम कुछ न कुछ ख़ुशी हम हर ओर से हम है पाते किताब में कई तरह की कहानी
हम हर बार है पाते पन्नों पे वह खुशियाँ लिखी है जो हम कभी सोच भी नहीं पाते क्यों सिर्फ देखे
उन गमों को और जिन्दगी से भागे जब जिन्दगी के नजरों में हमारी कई तरह की उम्मीद जागे
तो यह जिन्दगी है जिस में हर किताब जागे जिसमे हमें कई खुशियाँ जागे हर पन्नें पर ख़ुशी जागे
जिन्दगी जब उस नज़र से देखी तो लगता है वह किताब ही सही है वह  जिन्दगी उस पर हर बार नज़र अटके
क्यों की वही तो जिन्दगी है जिस को हर बार हम पूरे दिल से माँगे जो उसने लिखी किताब है उसे ही हम चाहे 

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