Tuesday 16 June 2015

कविता १५. बस ख़ुशी

                                                                बस ख़ुशी
जिन्दगी में कई बार हम आगे बढ़ते है उन मोड़ो पर जिनकी हमे कोई उम्मीद नहीं हर बार जब हम चलते है
कई बार वह राहे कुछ इस तरह की होती है की हमे उन पे चलना ही नहीं पर फिर भी यह जमाना चाहता है
बस हर घडी हम उसी राह पर चल दे जिस पे चलने की हमे तम्मना ही नहीं कुछ छोड़ के अपनी सोच चल देते है
पर हम तो उन चलनेवालो में से नहीं हम तो बस वही राह चुनते है हर घडी हमे चलना उन राहों पर है
तो वह राह होगी वही जिसे हम चाहते है क्युकी कोई राह आसान होती नहीं तो चुनो बस वही राह जिसे हम दिल से चाह सके
आखिर यह दिल ही तो साथ देता है हमारी हर घडी क्यों उसे समजाये और मजबूर करे चुनने को वह राह जो चाह न सके
हर मोड़ पर काटो पर चलना है उसे क्यों ना कभी कभी हम उस दिल की सुने चले उस राह पर जिस राह को चाहे
और शिकवा ना करे
क्युकी बिना उस दिल के हमे कुछ हासिल ही नहीं अपना दिल तोड़ कर जीते तो जहा क्या जीते उसे तो हार भली
चाहत को समजो उस दिल की वह चाहता है की वह अच्छे से रहे हँसता रहे और उसे दिखे सारी दुनिया भली
पर हम उसे समजाते है की जिन्दगी में सिर्फ काटे होते है आप कभी तो उसे फूल भी दिखओ ना यही दिल कहता है हर घडी
फुरसत में कभी सोचा करो जिन्दगी क्या दे गयी हमे पता है अगर दिल से पूछो गे तो वह जवाब देगा यही बस ख़ुशी और बस ख़ुशी 

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