Sunday 21 June 2015

कविता २६. पथ्तर का मजबूत घर

                                                     पथ्तर का मजबूत घर 
काच के  महलों में रहनेवाले पथ्तर फेका नहीं करते यह बात लोग अक्सर कहते है लेकिन किया नहीं करते
जब पथ्तर मिल जाये तो दूसरों के बारेमे सोचे बिना  फेक देते है लोग इसे पहले खुद के बारेमे भी सोचा नहीं करते
इनको ना होश होता है ना समज होती है बात की दूसरों के रिश्तों में आग लगानेवाले अपने घर के बारे में कभी  सोचा नहीं करते
काच सा नाजुक होता है हमारा दिल का महल उस पर पथ्तर फेकने से पहले अपने घर की परवाह नहीं करते  
शायद उन्हें अहसास ही नहीं होता अपने घर में भी काच का ही झरोका है होता वरना अपने लिए ही वह लोग चुपचाप रह लेते 
पर ठिक से सोचे तो इसमें भी क्या बुरा है जो टुटा था वह अपने घर का नाजुक हिस्सा था अब मजबूत हम घर बनाया है करते 
काच को भी पिंजरों में बांधा करते है तो किसी पथ्तर से हमे अब फर्क नहीं होगा क्युकी अब हम शिशो में नहीं दीवारों में है रहते 
माना की बड़ा खूबसूरत था पर नाजुक था वह झरोका उसके टूटने का अफ़सोस क्या जिस पर हम कभी भी यकी नहीं कर सकते 
घर में सिर्फ खूबसूरती ही नहीं काफी मजबूती भी अहम है मजबूत घर ही तूफानों में बिना टूटे खड़े है रहते  
अच्छा है पथ्तर ने हमे बता तो दिया हम बिना सोचे समजे किस तरह के खूबसूरत पर नाजुक से घर में थे रहते 
मजबूत हो जो जिसे पथ्तर ना तोड़ पाये इस तरह के घर ही खूबसूरत है  होते पर जब तक कोई पथ्तर ना हम कहा है समजते 
की हमे मजबूती की जरूर है पथ्तर फेकने से पहले लोग सोचा नहीं करते बस फेक देते है और कोने में है खड़े रहते 
काश उन्हें कोई समजाये पर वह लोग समज नहीं सकते तो यही वजीब होगा के हम शिशोंकी जगह पथ्तर के मजबूत घर क्यों न बना लेते 

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